और इससे तेज़ आख़िर क्या चलूँ। मैं हमेशा वक़्त का साया रहा।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

फ़ायदा तर्के-वफ़ा* से क्या रहा।
इक तमाशा हो गया अच्छा रहा।।
*
सब चरागाने-सहर* बुझने लगे।
एक यादों का दीया जलता रहा।।
*
और इससे तेज़ आख़िर क्या चलूँ।
मैं हमेशा वक़्त का साया रहा।।
*
कैसे-कैसे सूरमा आये गये।
ये जहाँ किसका हुआ किसका रहा।।
*
मुश्किलों के मरहले* आते रहे।
ज़िन्दगी का कारवाॅं चलता रहा।।
*
बस यही ज़ख़्मी परिंदे ने किया।
जब तलक था दम में दम उड़ता रहा।।
*
तब कहीं “अनवर” हुई है ये ग़ज़ल।
फ़िक्र* की गहराई में डूबा रहा।।
*

तर्के वफ़ा* प्रेम से विच्छेद प्रेम को छोड़ना
चरागाने सहर*सुबह के दीये
मरहले* यानी पड़ाव
फ़िक्र*चिंतन

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments