कभी टकराए लहरों से कभी मॅंझधार ने रोका। बहुत दुश्वारियाॅं आईं नदी के पार होने में।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर

शऊर ए दीद* लाज़िम है निगाहें चार होने में।
अभी कुछ साल गुज़रेंगे नज़र तलवार होने में।।
*
जहाॅं देखो वहीं दीवानगी का बोलबाला है।
मयस्सर* कुछ नहीं आया हमें हुशियार होने में।।
*
कभी टकराए लहरों से कभी मॅंझधार ने रोका।
बहुत दुश्वारियाॅं आईं नदी के पार होने में।।
*
जमाले यार* को मूसा* ने देखा सिर्फ़ ग़श* खाकर।
मगर हम जान दे देंगे तेरा दीदार* होने में।।
*
अभी हम सो गये तो क़िस्मतें भी सो ही जायेंगी।
ज़माना चाहिए “अनवर” हमें बेदार* होने में।।
*

शऊर ए दीद*दृष्टि की परिपक्वता
मयस्सर* मिलना प्राप्त होना
जमाले यार* ईश्वरीय तेज़ चमक
मूसा*एक पैगंबर जिन्होंने ईश्वरीय तेज़ को देखा
गश* मूर्छित होना
दीदार* दर्शन
बेदार* जागृत

शकूर अनवर
9460851271

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