कोई तो मोड़ आये ज़िन्दगी में । हक़ीक़त भी कहानी चाहती है।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

उड़ान अब आसमानी चाहती है।
मुहब्बत कामरानी* चाहती है।।
*
तुम्हारी तिश्नगी* ने ख़ून माॅंगा।
हमारी प्यास पानी चाहती है।।
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किनारों से उबल पड़ती है अक्सर।
नदी तो ख़ुद रवानी* चाहती है।।
*
तेरे चेहरे की ये रानाई* मुझसे।
मेरी जादू बयानी* चाहती है।।
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सुकूनत*अब नहीं मुमकिन ज़मीं पर।
मकानी ला मकानी* चाहती है।।
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कोई मेहमान ठहरे अब तो दिल में।
तबीयत मेज़बानी* चाहती है।।
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कोई तो मोड़ आये ज़िन्दगी में ।

हक़ीक़त भी कहानी चाहती है।।
*
लड़ाती है हमें आपस में “अनवर”।
सियासत हुक्म रानी* चाहती है।।
*
कामयाबी* सफलता, कामयाबी,
तिश्नगी*प्यास, तृष्णा,
रवानी* बहाव, तेज़ी,
रानाई* ख़ूब सूरती, वज़ादारी,
जादू बयानी* जादूई वर्णन,
सुकूनत* रहना, निवास करना,
ला मकानी* जहाँ मकान होने का आभास न हो,
मेजबानी* मेहमान नवाज़ी, अतिथि सत्कार,
हुक्म रानी* सत्ता, बादशाहत,
*
शकूर अनवर

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