ख़याल कीजिए मैं ज़ौक़े दीद* की ख़ातिर। तुम्हारे दर पे बहुत दूर चल के आया हूंँ।।

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शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

मैं अपने आप को अक्सर बदल के आया हूँ।
यहाँ भी शेरके पैकर में ढल के आया हूंँ।।
*
पहुॅंच गया हूंँ तेरी बज़्म*में ग़नीमत है।
मैं जानता हूॅं मैं कितना सॅंभल के आया हूंँ।।
*
जुनूने-इश्क़* मेरा जंगलों में भटका है।
मैं हादिसाते-मुहब्बत*में पल के आया हूंँ।।
*
ख़याल कीजिए मैं ज़ौक़े दीद* की ख़ातिर।
तुम्हारे दर पे बहुत दूर चल के आया हूंँ।।
*
ज़ुबान काट दो उस दुश्मने -गुलिस्ताँ*की।
जो कह रहा है गुलों को मसल के आया हूंँ।।
*
मसर्रतों* की मुझे भी तलाश है “अनवर”।
हुजूमे-यास* से मैं भी निकल के आया हूंँ।।
*

शेर*ग़ज़ल का एक शेर, काव्य,
पैकर* शक्ल, बिम्ब
बज़्म*सभा महफिल
जूनूने इश्क*प्रेम की दीवानगी
हादिसाते-मुहब्बत*प्रेम में होने वाली दुर्घटनाएं
ज़ोक़े दीद*देखने की दर्शन की इच्छा
दुश्मने-गुलिस्ताँ*उपवन का शत्रु
मसर्रतो*ख़ुशियों
हुजूमे-यास*निराशाओं की भीड़

शकूर अनवर
9460851271

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