
– विवेक कुमार मिश्र

तुम्हारे चेहरे पर जो रंग है
उसमें पृथ्वी की गंध है
फूलों की पंखुड़ियां हैं
और हवाओं से उतरती गंध में नहाई तुम
जब हंसती हो तो फूलों की पंखुड़ियां
झर जाती हैं धरती पर
और अंत तक तुम हंसती ही हंसती रहती हो
आखिर इतना क्यों हंसती हो
कि अल सुबह धरती पर
तुम्हारी हंसी सुनने के लिए
खिल जाते हैं फूल…!!
– विवेक कुमार मिश्र
सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002
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