
अब माँ अदृश्य है
-रानी सिंह-

अरे! कहाँ गयी ?
लो झोला लो
देखो क्या सब है…
उफ्फ! आज भी
आप नारियल तेल भूल गए
न सर्फ लाये/ न मंजन
दस में से पाँच चीज आप छोड़ ही देते हैं
पिता माँ की शिकायतों को अनसुना कर
खूंटी पर कमीज टांगते
और निकल पड़ते द्वार पर
माँ माँ !
ये देखो क्या लाये हैं आज
जामुन/बेर/शकरकंद/ग़ुलाब जामुन/ बताशा/तरबूज/पानी का सिंघाड़ा
भैया टेर लगाते घर में घुसते और सीधा माँ के पास ठहरते
माँ हुलसती
बिल्कुल बच्ची की तरह
माँ! ये चूड़ियाँ कैसी हैं
तुम्हारा मनपसंद कत्थई रंग ही लिया है
देखना तो जरा सूट का रंग/डिजाइन
अच्छा है ना माँ ?
माँ और ये भी देखो ना
बाल गोपाल की तस्वीर
बड़ी सुंदर लगी मुझे
अरे हाँ! कुछ पत्रिकाएँ भी हैं
लो पढ़ लो पहले तुम
बाजार से लौटकर थैला माँ के आगे ही
खोलने की आदत रही मेरी भी
और माँ चहक उठती
पत्रिका पलटती हुई झिड़कती प्यार से
तुम भी न बड़ी खर्चीली हो
पैसा दबा कर रखना नहीं आता
माँ जब भी खाने के लिए बैठती
छोटी बहन टपक पड़ती अचानक ‘मै भी…’
और अपने हिस्से की मिठाई/मलाई/कुछ भी स्वादिष्ट
माँ के साथ बाँट कर खाती
माँ का दिल भर आता
और नाज़ से भर उठती अपनी बेटी पर
मंझले भैया जब सर दर्द से छटपटाते
दवाइयाँ भी बेअसर होतीं
सुकून मिलता तो बस
माँ की गोद में सर रखने से ही
रात-रात भर सर सहलाती माँ जागती
ये कुछ दृश्य हैं माँ की उपस्थिति के
अब माँ अदृश्य है और
ये दृश्य भी
तकलीफें छूमंतर हो जाती थीं
माँ के स्पर्श से
खुशियाँ पूरी होती थीं
माँ के साथ बाँटने से ही
अब सारी दुनिया से बाँटकर भी
तकलीफें बरकरार रहती हैं
खुशियाँ अधूरी।
©️ रानी सिंह