
– विवेक कुमार मिश्र-

घोड़े जो धरती नापते हैं
कहीं से कहीं टापते रहते हैं
कहां घोड़े किसी दुर्गम अलंघ्य दूरी को कुछ समझते
वे तो बस एक संकेत पर चलने लगते हैं
घोड़े की पीठ और पैर को
मालिक एक बार बस हल्का सा स्पर्श देता
और घोड़ा है कि हवा से बातें करने लगता
हां खूब सुना है पढ़ा है कि
घोड़े तो हवा की गति से भी तेज चलने लगते हैं
ऐसे ऐसे घोड़े हुए कि
हर दूरी उनके पैरों की जद में आ जाती
जब घोड़े चलते हैं तो रास्ते पर
उनकी बस चाल देखी जाती
कहते हैं कि घोड़े के पैरों में नाल जब ठोंक दी जाती है तो ठीक से भागता
हां ! भागता होगा पर उसका क्या जो घोड़े सह रहे हैं
घोड़े बहुत तकलीफ़ में होते हैं जब उनके पैरों पर नाल ठोंकी जाती
और नाल बस रफ्तार बढ़ाने के लिए ठोंक दी जाती
पैरों के दर्द घोड़े ही महसूस करते
नाल पैरों में चुभती है
उसका चुभना किसी को नहीं दिखता
सब बस घोड़े की टाप को सुनते हैं
घोड़े की रफ्तार को देखते हैं
किसी को भी नहीं दिखता कि
पैरों में जो नाल ठुकी है वह कितना दर्द देती है
घोड़े तो बस मुंह बा कर अपने दर्द का बयान करते हैं।
– विवेक कुमार मिश्र