
-विवेक कुमार मिश्र-

नींद में, स्वप्न में , जागरण में
तुम ! तुम ! तुम ! तुम ! तुम !
और तुम गर्म चाय के भाप सी
उठती रहती हो …और ताजगी
और रंग का जादू
इस तरह चला आता कि
इसके आगे कुछ नहीं चाहिए
चाय यहीं से रचती है संसार
और संसार की हर गतिविधि
चाय के इर्द गिर्द घूमती रहती
संसार भर की इच्छाएं
जहां से उठती रहती गर्म – गर्म भाप
और संसार की सत्ता यहीं से
रूप रंग में नृत्य करती रहती
भाप के गर्म गर्म फाहे से अहसास लिए
इस तरह कि थकान / आलस
न जाने कहां छूट जाते
और चल पड़ता चाय का दौर
गर्म गर्म आंच से मन मस्तिष्क पर छा जाती
यहां से वहां तक कुछ और नहीं
तुम्हारा ही अस्तित्व …
जादू और रहस्य का रचता रहा संसार ।