सलासिये
-शकूर अनवर-
1
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अब कुछ नया करें—-
सब तिलिस्मी* कहानियाॅं सुन लीं।
सब हवा ने उड़ा दिये क़िस्से।
हो चुकीं आसमान की बातें।।
2
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हक़ीक़त—-
ख़्वाबों में थे बाग़ बगीचे।
ऑंख खुली तो सामने आये।।
जंगल सहरा*और समंदर।।
3
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तरतीब—-
उगता सूरज निगल गया शब* को।
शाम सूरज को खाने वाली है।
रात फिर हमको खाने दौड़ेगी।।
तिलिस्मी* जादूई
सहरा*रेगिस्तान
शब*रात
शकूर अनवर
9460851271
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