
-सुनीता करोथवाल-

जब भी अपने पूर्वजों को याद करो
याद करना उन्हें बैलों के साथ
सोचना उनकी हिलती गर्दन की कमाऊ धुन के बारे में
बखत अंधेरों के गीत समझना।
देखना अपने पूर्वजों के एक हाथ में सांटा
और दूजे में गळामी
जीभ से चटकता एक हलकारा सुनना
और देखना दो बैलों का तालमेल
बोझा, रहट,रेहड़ू, पैर, गिरड़ी, फाळी, हल, मेज, बिजोटिया, छाबड़ी भरा ज्वारा, कोल्हू
एक दुनिया रही उनकी।
भीगे चने से भरी खोर का रुतबा महसूस करना
ग्वार से भरे खेत देखना
लोहे का खुर्रा हाथ में ले उनकी पीठ सहलाना
और थुरथुरी महसूस करना
भरी बाल्टी दूध की पीते हुए नथुनी टपकती देखना
देखना जीभ से नाक साफ करते हुए।
देखना तराशा हुआ चिकना जुआ
और जु-जु के बोल पर बैलों का गर्दन झुकाना
बजती हुई चौरासी
होली-दिवाली बैलों के साथ मनी
हर जीव के साथ मंगल गाए गए
हर जी का भला चाहा
महेंदी की मुट्ठियाँ बैलों की पीठ पर भी लगी
गुड़ की पेड़ी जीभ पर
मांडने, चितणे, सींगों पर मला काला तेल
खुरों को किया चिकना
मोतियों की गळामी पहनाई
शृंगार उनका भी हुआ।
नाथ पहन, दाग लगवाकर बैल बने थे
बेटों-से रहे पूर्वजों के
इन्हें साथ याद करना
और सोचना उनका दम-खम
फिर छूटी नकेल और आवारा होने की कहानी
अंत में यह जरूर सोचना
कितना खतरनाक है ताकत का आवारा होना।