जब जब भी गुलसिताँ में फ़स्ले-बहार* आई। चेहरे पे हमने सबके रंगे-मलाल* देखा।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

अपने लहू का हमने अक्सर उबाल देखा।
आईना जब भी देखा चेहरे को लाल देखा।।
*
क़ुदरत का हमने यारो ये भी कमाल देखा।
अपने ही हाथों हमने अपना ज़वाल* देखा।।
*
सब ताइरों* ने अपनी रफ़्तार* तेज़ कर दी।
गिरता हुआ सरों पर जब जब भी जाल देखा।।
*
तशबीह* दूॅं तो किस से किस से मिसाल तुझको।
मेरी नज़र ने तुमको जब बेमिसाल देखा।।
*
क्या चाहता था तुम से क्या थी मेरी तमन्ना।
तुमने कभी न मेरा दस्ते- सवाल* देखा।।

जब जब भी गुलसिताँ में फ़स्ले-बहार* आई।
चेहरे पे हमने सबके रंगे-मलाल* देखा।।
*
कहते हैं लोग ज़ालिम क्यूॅं आसमाॅं को “अनवर”।
हमने तो इस ज़मीं पर जीना मुहाल* देखा।।
*

ज़वाल*पतन
ताइरों*पक्षियों परिंदों
रफ़्तार*गति
तशबीह*मिसाल उदाहरण
दस्ते-सवाल* मांगने वाला हाथ
फ़स्ले-बहार* बसंत ऋतु
रंगे-मलाल*दुखों का रंग
मुहाल*कठिन

शकूर अनवर
9460851271

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