ज़लज़ला तो सारी बस्ती ले गया। उसमें अपना कोई घर भी था तो क्या।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर
मेरी ग़ज़लों में असर भी था तो क्या।
मेरे अंदर ये हुनर भी था तो क्या।।
*
वो कोई किरदार* का अच्छा न था।।
शहर में वो मोतबर* भी था तो क्या।।
*
ज़लज़ला तो सारी बस्ती ले गया।
उसमें अपना कोई घर भी था तो क्या।।
*
थी मेरे हर हाल पर उसकी नज़र।
वो बज़ाहिर* बे ख़बर भी था तो क्या।।
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वो तो मेरे क़त्ल पर रोये न थे।
शहर सारा नोहागर* भी था तो क्या।।
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हमने जब जो कुछ भी चाहा वो किया।
फिर ये जीवन मुख़्तसर* भी था तो क्या।।
*
हम दिलों के दर्द को पहचानते।
बस्तियों में शोरो- शर* भी था तो क्या।।
*
दर्स* देते हम मुहब्बत का उसे।
उसके अंदर जानवर भी था तो क्या।।
*
कुछ तो रखते आप “अनवर” हौसला।
कोहसारों* का सफ़र भी था तो क्या।।
*
किरदार* चरित्र
मोतबर* सम्माननीय
बज़ाहिर*प्रत्यक्ष रूप से
नोहागर*विलाप करने वाला
मुख़्तसर*संक्षिप्त
शोरो-शर* झगड़ा फसाद
दर्स देना* पाठ पढ़ाना
कोहसारो* पहाड़ की तलहटी

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