
-रानी सिंह-

अरे!
ज़हर पी कर पैदा हुई है
ज़हर पीकर…
इन्हें क्या कोई हारी-बीमारी होगी
ज़हर पचा कर
अम्मर हो गई है… अम्मर
देखो जरा !
सूखी रोटी नमक खाकर भी
कैसे छतनार हुई जा रही हैं छोरियाँ
न जाने क्या ?
खुसुर-फुसुर करती हैं तीनों
बात-बात पर खिलखिलाती हैं
धस् मारती ये जंगल-झाड़ छोरियाँ
पता नहीं कभी उमजने भी देगी कि नहीं
खानदान के एकलौते चिराग को
कितनों दवा-दारू, टोनिक-बिटामिन
खान-पान दो
इस कलकुसरे छोरे को
देह पर बारह ही बजा रहता है
एकलौते पोते के जरा सा खाँसने भर से
दादी तीनों पोतियों को
गालियों से बिछ लेती हैं
वैसे तो इस तरह गालियों से
असीसने की आदत
पुरानी है उनकी
लेकिन जब से तीन पोतियों के बाद
पोता जन्मा है
उनकी गालियाँ
और ज्यादा तीखी हो गई हैं
वहीं तीनों छोरियाँ गालियों को
हवा में उड़ाती और ज्यादा बेपरवाह
क्यों बुरा नहीं लगता
क्यों सह जाती हो हँस-हँस कर
इतनी जली-कटी तुम ?
पूछने पर बतातीं हैं वो
उनकी इच्छाओं-अनिच्छाओं को ठेंगा दिखा
मारक गोलियों और इंजेक्शनों को
बेअसर कर जन्मी हैं हम
अब उनकी गालियों का
भला क्या असर होगा हम पर
सच कहती हैं वो
ज़हर पी कर पैदा हुईं हैं हम…
ज़हर पीकर…
©️ रानी सिंह