
– विवेक कुमार मिश्र-

रेखाएं एक किनारे से उठते हुए आ जाती हैं । इस पार से उस पार तक अनगिनत रेखाएं रचती रहती हैं जीवन लीला । हर रेखा एक दूसरे को काटते , एक दूसरे पर गिरते परते अनगिनत दिशाओं से अपने होने की अस्तित्व की सूचना देती है । एक की परिधि जहां समाप्त होती वहीं से दूसरी परिधि शुरू हो जाती है । यह पूरा संसार इसी तरह एक क्रम पर चलता रहता है । इसी क्रम पर खुशी का संसार और समूचा जीवन विस्तार चलता रहता है । कहीं से कहीं तक खींच लें कोई भी रेखा पूरी नहीं होती । एक अधूरा पन लिए हर रेखा चली जाती है । खींचती हुई रेखा इस छोर से उस छोर तक ऐसे चली जाती है कि आसमान की दूरी भी कम हों ।

















