लेकिन मैं तो तुम्हारे दिल में हूं मुझ से कैसे छुपाओगे

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एबेलमोस्कस मनिहोत: फोटो अखिलेश कुमार

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

सच बताना!
हे पुरुष! सच बताना
मुझसे कुछ ना छुपाना
झूठ के आवरण में
बने श्रवण, संत सरीखे
एक सच तो बोल कर दिखाना
फिर मेरे दिल में जगह बनाना
बस, सच बताना…
क्या तुम्हें मां के हाथ की रोटी
सच में याद आती है
तो फिर क्यूं बाहर जाकर
मोमोज, चाऊमीन
खाकर भूख मिटाते हो
मट्ठे से नहीं पैग से प्यास बुझाते हो
बस, सच बताना…
वो मित्र,छप्पर,खेत, गलियां
बहुत मिस करते हो
गांव की मिट्टी की सौंधी महक
देश सेवा का जज्बा
फिर क्यों छोड़ दिया देश ही
जा बसे परदेस हो
सच बताना…
जिस मित्र पत्नी के मायके
जाने के लिए, झगड़े थे
वो! अब मित्र के साथ भी नहीं
पर क्या, अब भी मेरे
मायके नहीं आओगे
कभी मेरे #पिता की पीड़ा, समझ पाओगे
बस, सच बताना…
मुझसे झूठ बोलने की कोशिश में
अक्सर, हड़बड़ाते हो
फिर भी झूठ बोल जाते हो
हर बार पकड़े जाते हो
लेकिन मैं तो तुम्हारे दिल में हूं

मुझ से कै छुपाओगे
सच बताना….

अपने सुंदर भावों को
उकेरने में माहिर
मेरी, मेरे बच्चों की वो शामें
जिसमें करते थे इंतजार
उनमें रंग भर पाओगे
क्या उनका बचपन लौटा पाओगे
सच बताना…
हे पुरुष! सच बताना,मुझसे कुछ ना छुपाना।
_मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान

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