तुझ से उम्मीद मैं फूलों की लगा बैठा हूँ। मैं तेरे दर पे चला आया हूॅं पत्थर न बता।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

अपने माज़ी का कोई नक़्शे-मुनव्वर* न बता।
गुमशुदा* जन्नत ए फ़िरदौस* का मंज़र न बता।।
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ज़ब्त कर ज़ब्त मुहब्बत का यही शेवा* है।
मस्लेहत* है कि सितम गर को सितमगर न बता।।
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ज़िंदगी ख़्वाब नहीं ऑंख का धोखा भी नहीं।
इस हक़ीक़त को सराबों* का समन्दर न बता।।
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लग़्ज़िशों* से तेरी ख़ुद क़ाफ़िला भटका तेरा।
अपनी महरूमी ए मंज़िल* को मुक़द्दर न बता।।
*
तुझ से उम्मीद मैं फूलों की लगा बैठा हूँ।
मैं तेरे दर पे चला आया हूॅं पत्थर न बता।।
*
किसने फूॅंका है अभी शहर में घर रहने दे।
किसका डूबा है अभी ख़ून में ख़ंजर न बता।।
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जनता हूँ मैं तेरे अज़्मे-जवाॅं* को “अनवर”।
अस्रे-हाज़िर* का अभी खुद को सिकन्दर न बता।।
*

माज़ी*अतीत,भूतकाल
नक़्शे-मुनव्वर*चमकीले चिन्ह
गुमशुदा*खोई हुई
जन्नत ए फ़िरदौस* स्वर्ग
शेवा*तरीक़ा, ढंग
मस्लेहत*मशवरा,पॉलिसी
सराबों*मरीचिकाओं
लग़्ज़िशों*कमियों कमजोरियों
महरूमी ए मंज़िल*मंज़िल का नहीं मिलना
अज़्मे जवाॅं*भरपूर हौसला
अस्रे-हाज़िर*मौजूदा दौर वर्तमान काल

शकूर अनवर
9460851271

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