ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
मुहब्बत का बिछौना खा गया है।
हमें फूलों पे सोना खा गया है।।
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ज़माने से नहीं कोई शिकायत।
हमें ख़ुद अपना होना खा गया है।।
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हम अपनी गंगा मैली कर रहे हैं।
हमें पापों का धोना खा गया है।।
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घरेलू लड़कियों के दुख अलग हैं।
उन्हें सीना पिरोना खा गया है।।
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मिलेगा चैन बस मिट्टी में* उसको।
जिसे मिट्टी का सोना* खा गया है।।
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तेरे ए ज़िंदगी क्या गीत गाऊँ।
मुझे बस तुझको रोना खा गया है।।
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नहीं बहलेगा “अनवर” दिल हमारा।
इसे जीवन खिलौना खा गया है।।
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मिट्टी में*मरने के बाद
मिट्टी का सोना*ज़र सोना मालो दौलत
शकूर अनवर
9460851271