
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

बुराई से बचा कोई नहीं है।
मगर ख़ुद से बुरा कोई नहीं है।।
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दरीचों पर सजे दहशत के परदे।
कहीं से झाॅंकता कोई नहीं है।।
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दिलों में दूरियाॅं कर ली हैं हमने।
नहीं तो फ़ासला कोई नहीं है।।
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दुखों को बांटना अच्छा है लेकिन।
दुखों को बाॅंटता कोई नहीं है।।
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ये बाज़ार ए मुहब्बत भी अजब है।
यहाॅं खोटा खरा कोई नहीं है।।
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किनारों से तो हम सब खेलते हैं।
समंदर आशना* कोई नहीं है।।
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तुम इंसानों में इंसानों को ढूॅंढो।
यहाॅं पर देवता कोई नहीं है।।
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बदल सकते हैं ख़ुद भी ज़िंदगी को।
मुक़द्दर से बॅंधा कोई नहीं है।।
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ग़मों ने शक्ल बदली ऐसी “अनवर”।
मुझे पहचानता कोई नहीं है।।
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समंदर आशना*समंदर से परिचित
शकूर अनवर