
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
मरने जीने का ढब* नहीं आता।
“इश्क़ बिन ये अदब नहीं आता”।।
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दिल पे टूटा है कोई ग़म का पहाड़।
अश्क* यूॅं बे सबब नहीं आता।।
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ख़ून रोना जिगर लहू करना।
हर किसी को ये सब नहीं आता।।
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उसको देखा तो सबको भूल गया।
कोई भी याद अब नहीं आता।।
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मुफ़लिसी में सिवाय मेहरूमी।
कोई जामे तरब* नहीं आता।।
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याद उसकी हमेशा आती है।
वो ही आता है जब नहीं आता।।
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ऑंख तो बस ये देखती “अनवर”।
कब वो आता है कब नहीं आता।।
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ढब*तरीक़ा
अश्क*ऑंसू
मुफ़लिसी* ग़रीबी
जामे तरब*खुशी या मस्ती का जाम
शकूर अनवर
9460851271
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