
ग़ज़ल

शकूर अनवर
ऑंख तो रोए रुलाये।
दिल ही सारे ग़म उठाये।।
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हमने ऐसा क्या बिगाड़ा।
ये ज़माना क्यूॅं सताये।।
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ग़ैर* को अपना बना कर।
कर लिये अपने पराये।।
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किसके दिल में क्या छुपा है।
कोई कैसे जान पाये।।
बस तेरी दुनिया रहेगी।
कोई आये कोई जाये।।
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मतलबी है ये ज़माना।
कौन किसके काम आये।।
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दोस्ती भी कर ही लेंगे।
दुश्मनी तो रास आये।।
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किसकी याद आई है “अनवर”।
चाॅंद तारे झिलमिलाये।।
ग़ैर* दूसरा अन्य
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