ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
अपनों को बेगाना* मत कर।
बस्ती को वीराना* मत कर।।
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पहले ही भूला हूॅं ख़ुद को।
और अधिक दीवाना मत कर।।
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अफ़सानों* की बातें मत लिख।
बातों का अफ़साना मत कर।।
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ऑंख में रहने बसने वाले।
ख़वाबों पर जुर्माना* मत कर।।
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काफ़ी है नैनों की मदिरा।
यार इधर पैमाना मत कर।।
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यौवन पर अंकुश ही अच्छा।
मौसम को मस्ताना मत कर।।
”
द्वेष भरा हो जिनके मन में।
ऐसों से याराना मत कर।।
”
क्या समझेगी दुनिया “अनवर”।
तू अपना हर्जाना मत कर।।
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बेगाना*पराया, अजनबी
वीराना*उजड़ा हुआ
अफ़सानों*क़िस्से कहानियाॅं
जुर्माना* सज़ा के तौर पर भरी जाने वाली रक़म
हर्जाना* घाटा नुक़सान
शकूर अनवर
9460851271