ग़ज़ल
शकूर अनवर
धुऑं फ़ज़ा में भला किस लिये उठा होगा।
मुझे यक़ीन है मेरा ही घर जला होगा।।
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हमारे बीच में आख़िर ये फ़ासला क्यूँ है।
हमारे बीच यही आज फ़ैसला होगा।।
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मैं फिर उसी की क़यादत* में कर रहा हूँ सफ़र।
मुझे ख़बर है मेरे साथ हादसा* होगा।।
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मैं तुम से तर्क- मुहब्बत*करूॅं तो क्या हासिल।
तुम्हारे ग़म में कोई और मुब्तला होगा।।
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यज़ीदियत* पे है मौक़ूफ़* नज़्म* दुनिया का।
ज़मीं पे फिर कोई कोहरामे- कर्बला* होगा।।
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न आये दिल में ख़याले-शिकस्तगी* “अनवर”।
सफ़ीना* डूब ही जायेगा और क्या होगा।।
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फ़ज़ा*वातावरण
क़यादत*मार्गदर्शन
हादसा*दुर्घटना
तर्के-मुहब्बत*प्रेम के संबंध विच्छेद
मुबतला* फॅंसा हुआ प्रेमी
यज़ीदियत*अत्याचारी शासन
मौक़ूफ़*निर्भर
नज़्म*व्यवस्था शासन
कोहरामे-कर्बला*कर्बला जैसी लड़ाई
ख़याले-शिकस्तगी*पराजय का विचार
सफ़ीना*नावों का बेड़ा
शकूर अनवर
9460851271