
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
तूफ़ान आयेंगे यहाॅं आयेंगे ज़लज़ले*।।
इस ज़िंदगी की राह के मुश्किल हैं मरहले*।
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रोऍंगी बिजलियाॅं भी जिन्हें फूट-फूट कर।
इस दौरे-नामुराद* में वो आशियाॅं* जले।।
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शायद गुज़र रहा हूँ मैं काॅंटों की राह से।
फूटे ही जा रहे हैं ये पाॅंवों के आबले*।।
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नादान मुझको दूरी ए मंज़िल का ग़म नहीं।
तय करके आ रहा हूँ मैं कितने ही फ़ासले।।
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उड़ने की आरज़ू मेरे दिल से न जायेगी।
सय्याद* चाहे मेरे परों को ही काटले।।
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तन्हा* समझ रहा है तू क्यूँ अपने आप को।
“अनवर” तुझी से मिल के बनेंगे ये क़ाफ़ले।।
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ज़लज़ले*भूकंप मुसीबत,
मरहले*पड़ाव
दौरे नामुराद*बदनसीब ज़माना
आशियाॅं,घोंसले घर
आबले*छाले
सय्याद*परिंदों का शिकारी बहलिया
तन्हा*अकेला
शकूर अनवर
9460851271