नादान मुझको दूरी ए मंज़िल का ग़म नहीं। तय करके आ रहा हूँ मैं कितने ही फ़ासले।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

तूफ़ान आयेंगे यहाॅं आयेंगे ज़लज़ले*।।
इस ज़िंदगी की राह के मुश्किल हैं मरहले*।
*
रोऍंगी बिजलियाॅं भी जिन्हें फूट-फूट कर।
इस दौरे-नामुराद* में वो आशियाॅं* जले।।

*
शायद गुज़र रहा हूँ मैं काॅंटों की राह से।
फूटे ही जा रहे हैं ये पाॅंवों के आबले*।।
*
नादान मुझको दूरी ए मंज़िल का ग़म नहीं।
तय करके आ रहा हूँ मैं कितने ही फ़ासले।।
*
उड़ने की आरज़ू मेरे दिल से न जायेगी।
सय्याद* चाहे मेरे परों को ही काटले।।
*
तन्हा* समझ रहा है तू क्यूँ अपने आप को।
“अनवर” तुझी से मिल के बनेंगे ये क़ाफ़ले।।
*

ज़लज़ले*भूकंप मुसीबत,
मरहले*पड़ाव
दौरे नामुराद*बदनसीब ज़माना
आशियाॅं,घोंसले घर
आबले*छाले
सय्याद*परिंदों का शिकारी बहलिया
तन्हा*अकेला

शकूर अनवर
9460851271

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