
क़तआत (मुक्तक)
-शकूर अनवर-
1
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बुझा रखे हैं मुहब्बत के सब दीये जिसने।
तुम अपने दिल से वो नफ़रत निकाल कर देखो।
ख़ुशी है कितनी मुक़द्दर में और ग़म कितने।
ये जानना है तो सिक्का उछाल कर देखो।
2
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यूॅं भी दुनिया में हमेशा तो नहीं रहना है।
जो भी होना है मेरे साथ वो हो जाने दो।
ख़त्म हो जायेगा फिर देखना मौजों* का ग़ुरूर।
तुम सफ़ीने* को मुझे आज डूबो जाने दो।
3
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और क्या हुआ होगा लोग लड़ गये होंगे।
शहर ए अम्न* वाले भी पड़ गये मुसीबत में।
फिर फ़साद उठ्ठेगा घर जलेंगे फिर “अनवर”।
अब चलें ख़ुदा हाफ़िज़ फिर मिलेंगे जन्नत में।
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मौजों* लहरों
ग़ुरूर*घमंड
सफ़ीना*बेड़ा नावों का समूह
शहर ए अमन*शांतिप्रिय नगर
ख़ुदा हाफ़िज़* ईश्वर रक्षा करे
शकूर अनवर
9460851271