
-सुजाता सुज्ञाता-

दहेज को काढ़े गए रुमाल
न खोंसे गए कभी कमरबंद में
न सहेजे गए बटुए में
न ही कभी हाथ में लेकर
पोंछा गया इनसे पसीना,
तरकारी या चाशनी का कोई दाग !
इनपर कढ़े बेल-बूटों के रंग हर गुजरते दिन
दहेज के बक्सों में विराजे और गाढ़े होते गए,
उधर फीके पड़ते रहे ससुराल में
इन्हें काढ़ने वाली के लाड़ ,चाव, दुलार !
बक्से ठीक करते इनकी किनारियाँ
सीधी कर रखती वो अक्सर सोचती
इन रेशमी बेल बूटेदार रुमालों
और स्वयं के अस्तित्व की सार्थकता !
एक लकड़ी के फ्रेम पर कस
रंगीन रेशमी डोरियों से बींध गढ़ा गया,
दूजा समाज के फ्रेम में कस,
नियम कायदों की डोरियों से!
#Sugyata सुजाता गुप्ता