
-पीयूष कुलश्रेष्ठ-

सोते कैसे हो रातों में
बड़ा जहर, बड़ी नफरत है तेरी बातों में
बताओ, सोते कैसे हो रातों में।
आंधी छप्पर भी तेरा ले उड़ी
बताओ, कैसे रहोगे बरसातों में।
मक्कारी तेरी हो गई जग- जाहिर
बताओ, क्या कहोगे मुलाकातों में।
मन उदास और तबियत है उखड़ी – उखड़ी
बताओ, कैसे झूमोंगे बरातों में।
न काम, न धंधा, रोटी के भी लाले
बताओ,क्या करोंगे ऐसे हालातों में।
पाप का घड़ा अब भरने को है
बताओ, कैसे जाओगे जगरातों में।
बडे शातिर हैं फूट डालने वाले
बताओ कब तक उलझे रहोगे जातों में।
(वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)
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