-डॉ.रामावतार सागर-
एक कवि के संसार में सिर्फ उसका आस-पड़ोस भर नहीं रहता,उसके शब्दों का संसार सीमाओं के पार संपूर्ण सृष्टि को अपनी अभिव्यक्ति के दायरे में समेटना चाहता है।कवि के मन की उड़ान दृष्टिमय आसमान से भी आगे उस अनंत की यात्रा करती है जहाँ तक उसकी अनुभूति की सीमाएं जाती है।राजस्थान के शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त वरिष्ठ कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ यह तीसरी कृति है। हिंदी और राजस्थानी(हाड़ौती) में समानाधिकार से अपनी लेखनी चलाने वाले कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ कोटा ही नहीं वरन् राजस्थान की सीमाओं को पार कर देशभर में अपनी पहचान रखते हैं।इसका सटीक कारण भी है क्योंकि देश भर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं और गीत अनवरत प्रकाशित होते रहते हैं।कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ की रचनाएँ जागती जोत,नैणसी,आखर जोत,भारतीय रेल,हरिगंधा,पंजाब सौरभ,तुलसीप्रभा,जर्जर कश्ती,संकृति, मरु गुलशन,अनुकृति आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।लगभग तीन दशक की काव्य-यात्रा पूरी कर चुके ‘दिव्य’ साहित्याकाश में अब दैदीप्यमान नक्षत्र की तरह जाज्वल्यमान है।इनके प्राप्त सम्मानों और पुरस्कारों की भी एक लंबी सूची है जिसमें काव्य श्री (गाजियाबाद),राष्ट्रभाषा रत्न (जैमिनी अकादमी),शिक्षाविद की मानक उपाधि (राजसमंद),सारस्वत साहित्य सम्मान(कोलकाता),पूरब-पश्चिम काव्य गौरव सम्मान, विजय हिरदै कविरत्न सम्मान(छत्तीसगढ़)आदि प्रमुख है।कवि बद्रीलाल दिव्य की काव्य यात्रा को आगे बढ़ाने में अनेक संस्थाओं और संस्थानों का भी योगदान रहा जिनमें से प्रमुख रूप से श्री भारतेंदु समिति,कोटा, विकल्प जन सांस्कृतिक मंच,कोटा, सारंग साहित्य संगम कोटा, ज्ञान भारती संस्थान कोटा, डॉ.अंबेडकर सेवा समिति, चंबल साहित्य समिति कोटा, और आर्यावर्त्त साहित्य समिति कोटा आदि हैं।
“मेरी उड़ान” काव्य संग्रह की कविताओं से होकर गुजरते है तो यह अहसास प्रबल होता जाता है कि कवि बद्रीलाल “दिव्य” संभावनाओं के कवि है। संग्रह की पहली कविता “फिर लौटूंगा” में वे लिखते हैं कि- ” देखो ! , मैं फिर लौटूंगा, सिर्फ,तुम्हारे, इस संसार में, जो स्मृतियाँ, रह गई है शेष, उन्हें समेटने।” होने को तो कवि दिव्य की अनुभूतियों में देश भी है और दुनियां भी, संस्कृति भी है और प्रकृति भी,सैनिक भी है और किसान भी है लेकिन कवि दिव्य का मन सबसे ज्यादा अपने लोक में रमता है।इस लोक में तीज-त्यौहार है,सावन के झूले हैं,रंभाती हुई गाय है,बसंत के मदमस्त झौंके से उड़ती माटी की वो सुगंध है जो उन्हें लोक में प्रतिष्ठित करती है।संग्रह की शीर्षक कविता ” मेरी उड़ान” में कवि दिव्य कहते हैं- “मेरी उड़ान केवल, मेरे गृह तक नहीं है, सीमित, मैं उड़ता हूँ व्योम में,किसी दुर्दांत शिकारी की,परवाह किए बगैर”। काल रूपी दुर्दांत शिकारी समय की उड़ान पर प्रतिबंध लगाना चाहता है लेकिन कवि का दृढसंकल्पित विश्वास उसे जीने का हौंसला प्रदान करता है।
काव्य संग्रह की एक कविता ” सपने हुए हताश” में कवि दिव्य बेरोजगारी के इस दौर में व्यर्थ होती डिग्रियों के लिए लिखते हैं कि-” बूढ़ी माँ रोज, देखती है सपने,अपने पुत्र की नौकरी के, मगर डिग्रियाँ हो चुकी है, हताश, कोरे कागज की तरह व्यर्थ”। इस तरह की अनेक कविताएं संग्रह में है जो पाठकों के मनोमस्तिष्क को झकझोरती है।समाज में व्याप्त विडंबनाओं पर गहरा प्रहार करती है।इस मायने में कवि बद्रीलाल दिव्य एक सजग और सावचेत रचनाकार है जो न केवल अपनी कविताओं के माध्यम से जन-जागरण का कार्य करते है साथ ही अनुभूति के स्तर पर पाठकों से जुड़ कर संवेदनाओं का एक पुल तैयार करते है जिस पर पाठक-समाज और कवि के बीच एक रचनात्मक जुड़ाव होता रहता है।
कवि बद्रीलाल दिव्य का यह काव्य संग्रह निश्चित रूप से रचनाकारों के बीच सम्मान प्राप्त करेगा ऐसी आशा और अपेक्षा है।उनका अनवरत लेखन यह भी आशा जगाता है कि अभी उनकी लेखनी से प्रस्युत और भी कविता एवं गीत संग्रह हमें पढ़ने को मिलेंगे।कवि दिव्य को एक पठनीय कविता संग्रह की बहुत-बहुत बधाइयाँ।
डॉ.रामावतार सागर
सहायक आचार्य हिंदी
कोटा, राजस्थान
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Ramavtar.gcb@gmail.com