
ग़ज़ल
शकूर अनवर
जहाॅं थक के बैठे वहीं अपना सोना।
ये अंबर की चादर ये धरती बिछौना।।
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वही अपने जीवन में जीवन का रोना।
वही ग़म की माला में ऑंसू पिरोना।।
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यह देखो कहीं चोट आये न इस पर।
कि नाज़ुक बहुत है ये दिल का खिलौना।।
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यह दुनिया का ग़म ही तो सरमाया अपना।
यही अपनी चाॅंदी यही अपना सोना।।
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चलो चल के लहरों से टकराऍं “अनवर”।
किनारे पे क्या अपनी कश्ती डुबोना।।
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शकूर अनवर
9460851271
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