ये तुम्हारे इश्क़ के आसार कुछ अच्छे नहीं। दिन में तारे गिन रही हैं फिर तुम्हारी उॅंगलियाॅं।।

shakoor anwar 00
शकूर अनवर

ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
उनको छूते ही गिरीं सारी की सारी उॅंगलियाॅं।
लम्स* की तलवार ने काटी हमारी उॅंगलियाॅं।।
*
थी हवाओं की शरारत फिर भी मेरे नाम को।
रेत पर लिखने की कोशिश में बिचारी उॅंगलियाॅं।।
*
ये तुम्हारे इश्क़ के आसार कुछ अच्छे नहीं।
दिन में तारे गिन रही हैं फिर तुम्हारी उॅंगलियाॅं।।
*
जब तक़ाज़ा अद्ल* का हो दस्ते मुंसिफ* क्या करे।
मौत का फ़रमान भी करती हैं जारी उॅंगलियाॅं।।
*
लग रहा है यूॅं मुझे ज़ालिम*का पंजा देखकर।
नोच कर खा जायेंगी जैसे शिकारी उॅंगलियाॅं।।
*
बात सच है जिन इशारों से जलीं ये बस्तियाॅं।
इनमे कुछ तो थीं तुम्हारी कुछ हमारी उॅंगलियाॅं।।
*
जिसकी जो आदत है “अनवर” उससे वो छुटती नहीं।
ताश के पत्ते ही पकड़ेंगी जुआरी उॅंगलियाॅं।।
*
लम्स*स्पर्श
अद्ल*न्याय
दस्ते मुंसिफ* न्यायधीश का हाथ
फ़रमान*आदेश
ज़ालिम*अत्याचारी

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments