
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
उनको छूते ही गिरीं सारी की सारी उॅंगलियाॅं।
लम्स* की तलवार ने काटी हमारी उॅंगलियाॅं।।
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थी हवाओं की शरारत फिर भी मेरे नाम को।
रेत पर लिखने की कोशिश में बिचारी उॅंगलियाॅं।।
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ये तुम्हारे इश्क़ के आसार कुछ अच्छे नहीं।
दिन में तारे गिन रही हैं फिर तुम्हारी उॅंगलियाॅं।।
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जब तक़ाज़ा अद्ल* का हो दस्ते मुंसिफ* क्या करे।
मौत का फ़रमान भी करती हैं जारी उॅंगलियाॅं।।
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लग रहा है यूॅं मुझे ज़ालिम*का पंजा देखकर।
नोच कर खा जायेंगी जैसे शिकारी उॅंगलियाॅं।।
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बात सच है जिन इशारों से जलीं ये बस्तियाॅं।
इनमे कुछ तो थीं तुम्हारी कुछ हमारी उॅंगलियाॅं।।
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जिसकी जो आदत है “अनवर” उससे वो छुटती नहीं।
ताश के पत्ते ही पकड़ेंगी जुआरी उॅंगलियाॅं।।
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लम्स*स्पर्श
अद्ल*न्याय
दस्ते मुंसिफ* न्यायधीश का हाथ
फ़रमान*आदेश
ज़ालिम*अत्याचारी
शकूर अनवर
9460851271