रहे हयात* की वीरानियों में याद उसकी। मेरे वजूद के सहराओँ* में गुलाब तो दे।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

क़तआत (मुक्तक)

-शकूर अनवर-
1
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यही सहारा बहुत है हमारे जीने को।
ख़याल ओ ख़्वाब* में वो चेहरा ए किताब* तो दे।
रहे हयात* की वीरानियों में याद उसकी।
मेरे वजूद के सहराओँ* में गुलाब तो दे।।
2
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हद से गुज़र चुके थे मुहब्बत की राह में।
शिकवा* हमारे दरमियाॅं कोई रहा न था।
मैं लज़्ज़ते-गुनाह* से मग़लूब* हो गया।
वो भी ख़ुदा के क़ह्र* से मुतलक़* डरा न था।।
3
**
हम अपनी तर्ज़* पे जी कर ये ज़िंदगी यारो।
जहाने-फ़ानी* से इक दिन गुज़र ही जायेंगे।
ज़माना अच्छा कहे या कहे बुरा हमको।
हमें जो करना है “अनवर” वो कर ही जायेंगे।।
**
ख़याल ओ ख़्वाब* विचार और स्वप्न
चेहरा ए किताब* सुंदर चेहरा, किताबी चेहरा
रहे हयात* जीवन पथ
वजूद के सहराओ*अस्तित्व का रेगिस्तान
शिकवा*शिकायत
लज़्ज़ते गुनाह* पाप का स्वाद
मग़लूब*परास्त
ख़ुदा का क़ह्र* ईश्वरीय प्रकोप
मुतलक़* कतई, बिल्कुल
तर्ज़* शैली
जहान ए फ़ानी* नश्वर संसार
शकूर अनवर
9460851271

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