
-डॉ.रामावतार सागर-

दिख रही है आज जो ऊंची खड़ी सी बिल्डिगें
खेत कितने खा गयी है ये बड़ी सी बिल्डिगें
भाई चारा आपसी व्यवहार भी सब खो गया
अब सिसकने लग रही है ये जड़ी सी बिल्डिगें
बिक नहीं पाई जो उंचे दाम में लो आज फिर
रेत का अंबार है खाली पड़ी सी बिल्डिगें
झुक नहीं सकती किसी के सामने इतना सा भी
जिद पे अपनी आज भी ऐसी अड़ी सी बिल्डिगें
शोख चंचल सी हसीना नाज नखरे साथ ले
लग रही है खूबसूरत फुलझड़ी सी बिल्डिगें
यूँ लिपट कर बादलों से मिल रहा हो आसमां
इस तरह लिपटी हुई है हथकड़ी सी बिल्डिगें
ये महानगरों की इक पहचान बनकर रह गयी
जुड़ रही है आज सागर इक लड़ी सी बिल्डिगें
डॉ.रामावतार सागर
कोटा, राज.