शहरे वफ़ा का आज ये कैसा रिवाज है मतलब परस्त अपनों का खालिस मिजाज है

chand sheri 1
चाँद ‘शैरी’

-चाँद ‘शैरी’-

शहरे वफ़ा का आज ये कैसा रिवाज है
मतलब परस्त अपनों का खालिस मिजाज है

फुटपाथ से गरीबी ये कहती है चीख कर
क्यूं भूख और प्यास का मुझ पर ही राज है

जलती रहेंगी बेटियाँ यूँ ही दहेज पर
कानून में सुबूत का जब तक रिवाज है

शायद इसी का नाम तरक्की है दोस्तों
नंगी सड़क पे हर बहू बेटी की लाज है

क्या जाने क्या हो देश का अंजाम देखिए
इंसानियत के खून से महंगा अनाज है

जब से गुलाम पैरों की टूटी है बेड़ियाँ
सर पर हर एक शख्स के कांटो का ताज है

उन रहबरों का हाल न ‘शेरी’ से पूछिए
खालिस लुटेरों जैसा ही जिनका मिजाज है

चाँद ‘शैरी’ (कोटा)

098290-98530

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments