ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
सर पे गिरा था वक़्त का पत्थर भी याद है।
जब तुम जुदा हुए थे वो मंज़र* भी याद है।।
*
कुछ दिन तुम्हारे क़ुर्बके लम्हात भी मिले।
कुछ दिन सॅंवर गया था मुक़द्दर भी याद है ।।
*
फिर भी पहुॅंच सका न तेरे रू-ब-रू* कभी।
यूॅं तो तेरी गली भी तेरा घर भी याद है।।
*
ऐ ज़िंदगी तू ज़ह्र दे या कर्बला मुझे।
मुझको हुसैन याद है, शंकर भी याद है।।
*
गुज़रूॅंगा दश्तो-सहराओ कोहसार सेअभी।
आएगा रास्ते में समंदर भी याद है।।
*
“अनवर” भुला सके न अभी कर्बला को लो।
ज़ालिम*के सामने न झुका सर भी याद है।।
*
मंज़र* दृष्य,
क़ुर्ब* सामिप्य,
लम्हात, क्षण,
रू-ब-रू* सामने,
दश्तो-सहरा, जंगल, रेगिस्तान,
कोहसार* पहाड़ की तलहटी,
ज़ालिम* ज़ुल्म करने वाला,
शकूर अनवर