ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
ऐ आहू-चश्म* तुमने क्या सितम ईजाद* कर डाला।
जिसे देखा नज़र भरकर उसे बरबाद कर डाला।।
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न तेशा* ही मिला हमको न काटी हमने चट्टानें।
मगर दुनिया ने क्या समझा हमें फ़रहाद कर डाला।।
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हमारे दिल के अन्दर अब किसी की याद रहती है।
खॅंडर था जो मकाॅं हमने उसे आबाद कर डाला।।
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पकड़कर जिसने रक्खा था हमें सोने के पिंजरे में।
कतर कर पर कहा लो अब तुम्हें आज़ाद कर डाला।।
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न आना था सुकूँ दिल को किसी सूरत नहीं आया।
सितारे गिन के छोड़े महवशों* को याद कर डाला।।
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मेरे दिल में किसी मनसब* की ख़्वाहिश कब रही “अनवर”।
मेरे अशआर ने लेकिन मुझे उस्ताद कर डाला।।
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आहू-चश्म*मृगनयनी
ईजाद*नई बात पैदा करना आविष्कार
तेशा*औजार
महवशों* चाॅंद जैसी सूरत वालों
मनसब*पदवी
शकूर अनवर
9460851271