
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
तेरी जफ़ाओं* में पिन्हाॅं* कोई वफ़ा तो नहीं।
ये बरहमी* भी तेरे प्यार की अदा तो नहीं।।
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मैं जानता हूँ तू ज़ालिम है और मैं हक़*पर।
मगर ये दिल मेरा मैदाने-कर्बला तो नहीं।।
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लो फूल तोड़ने वालों का फिर हुजूम उठा।
हसीन ग़ुंचा* चमन में कोई खिला तो नहीं।।
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भटक रहा हूॅं अज़ल* से मैं जिस तजस्सुस* में।
उसी तलाश का तुम कोई सिलसिला तो नहीं।।
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हवा में रेत के ज़र्रे* दिखाई देते हैं।
चलो तलाश करें उसमें क़ाफ़िला तो नहीं।।
ये कौन फूॅंक के चलता है राह में “अनवर”।
ये उससे पूछिये वो दूध का जला तो नहीं।।
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जफ़ाओं*जुल्म, ज़्यादती
पिन्हाॅं*छुपी हुई
बरहमी*नाराज़गी
हक़*सच्चाई
गुंचा*कली
अज़ल*प्रारंभ’ आदिकाल
तजस्सुस*तलाश खोज
ज़र्रे*कण
शकूर अनवर
9460851271

















