shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर

उठी आसमाॅं पर घटा दोस्ती की।
चली तो सही कुछ हवा दोस्ती की।।
*
मुझे भा गई ये अदा दोस्ती की।
अभी मुझसे वो कल मिला दोस्ती की।।
*
तेरी दोस्ती. से ख़फ़ा है ज़माना।
मिली है ये कैसी सज़ा दोस्ती की।।
*
चमेली को साॅंपों से ख़तरा नहीं है।
मिसाल* ऐसी कोई बता दोस्ती की।।
*
जहाँ नफ़रतों की हैं अंधी सुरंगें।
वहीं अपनी शम्मऐं जला दोस्ती की।।
*
क़सम कोई झूठी न खा दोस्ती में।
तुझे है क़सम बे वफ़ा दोस्ती की।।
*
कोई गीत गा प्रेम के राग में।
ग़ज़ल कोई “अनवर” सुना दोस्ती की।।
*
मिसाल* उदाहरण

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