धराड़ी

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Photo courtesy Akhilesh Kumar

-डॉ. रमेश चन्द मीणा

ramesh chand meena
डॉ. रमेश चंद मीणा

धराड़ी कुल रौंख है, प्रकृति लाड़ का रूप,
जल, जंगल और जमीं का, है ये जीवंत स्वरूप।
है ये जीवंत स्वरूप, आस्था का संगम प्यारा,
कुल गौत्र का मान, सहेजा हम सब ने न्यारा।
संस्कृति का प्रहरी, सिखलाए यह धरती रीत,
धरती की सेवा में, जुड़ता हर पीढ़ी प्रीत।

माटी की खुशबू में, हर जड़ का है प्रेम,
धरती को महकाए जो, जीवन का ये क्षेम।
जीवन का ये क्षेम, धरा में नव चेतन लाए,
धरती के संताप मिटे, हरियाली लहराए।
जल, जंगल का साथ, बना है नाता गहरा,
धराड़ी की छांव में, बंधा प्रेम का पहरा।

संस्कृतियाँ झूलती, धराड़ी के हर पात,
जंगल देता सुरक्षा, जीवन सजीव साक्षात।
जीवन सजीव साक्षात, सजीले सपने पलते,
मिलते हैं आशीष, धरा के संग ये चलते।
पर्यावरण प्रेम, सिखाता हर वृक्ष सुहाना,
जुड़ें हम सब इससे, सहचर हो जग सारा।

धराड़ी है गौरव, रीतों की सौगंध,
धरती से जोड़े हमें, हरियाली के बंध।
हरियाली के बंध, जीवन उत्स भारी,
संगम है विश्वास का, इसकी महिमा न्यारी।
कुल वृक्ष धरोहर, कण- कण समाया,
धरती की सेवा में, सतत यह छाया।

आदिवासी कुलधन है, धराड़ी की शान,
संस्कृति का प्रहरी यही, अस्तित्व का है प्रमाण।
अस्तित्व का है प्रमाण, वृक्ष यह रक्षा का घेरा,
सिखलाए हर पीढ़ी, जल, जंगल का फेरा।
धराड़ी से सीख, सभी को प्रेम सिखाना,
सजीव रहे धरती, इससे नेह निभाना।

डॉ. रमेश चन्द मीणा
09816083135
rmesh8672@gmail.com

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