
भाषा भावों को सहजता से संप्रेषित करती है ;ऑंखें तो बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह देती है, ऑंखें बोलती है, बतियाती है, विविध भावों अनुभूतियों को जीवंत कर देती है। एक बिम्ब उन आँखों में उतर आता है, जो उन स्थितियों घटनाओं और अनुभूतियों को महसूस कराने में सहायक होती है।
-डॉ अनिता वर्मा-
भाषा भावों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है । अपने भावों को संप्रेषित करने के लिए शब्द सहायक होते हैं, वाक्य बनते है और भाव व विचार आकार ग्रहण करते है । भाषा कोई भी हो सबकी अपनी प्रकृति ,व्याकरण और इतिहास होता है। कभी कभी बिना कुछ कहे भी मनुष्य अपने हाव भाव और आँखों से बहुत कुछ कह जाता है’ भरे भुवन में करत है , नैनों से ही बात’ यहाँ महाकवि बिहारी का यह दोहा अत्यंत प्रासंगिक है। आँखों की भाषा का अपना प्रभाव होता है जो सीधे मर्म को स्पर्श करती है । आँखों के द्वारा विविध भावों की अभिव्यक्ति की जाती है आवश्यकता है आँखों की भाषा को समझना। ऑंखें बहुत कुछ कहती है। भावों की विविधता के लिए देखिये ऑंखें कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिस पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता -” एक दिन मैं अपनी बहिन के साथ बाजार गई थी । वहीं एक ठेले से हम फल ले रहे थे और उसके पास ही चाट वाले ने अपना ठेला लगा रखा था बहुत भीड़ लगी थी । एक तरफ कुछ लड़कियों का समूह चटखारे लेकर पानी पताशे का आनंद ले रही थी’ भैया एक पताशा और चटनी डालकर देना’एक बोली थी दूसरी बोली’ मुझे भी देना।” तभी एक फटेहाल बालक पता नहीं कहाँ से वहाँ आकर बोला ‘दीदी! ‘उसके इस सम्बोधन के साथ उसकी ऑंखें भी बोल रही थी। शायद वह भी पताशे खाना चाहता था। उन लड़कियों ने उसे घूरते हुए देखा था । वह सहम कर एक और हमारे पास आ खड़ा हुआ था। मैंने पताशे वाले से कहा’ भैया इसे खिला दो और हमें भी इसके पैसे हम दे देंगे’।यह सुनकर उस बालक की आँखों में आनंद का भाव तैर गया था। वह मग्न होकर पताशे खाने लगा था। तो हम बात कर रहे थे आँखों की भाषा की देखिये ,छोटी सी बात पताशे खाने की थी, पर वहाँ आँखों की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका थी; जो बहुत कुछ कह गई थी ।लड़कियों का बालक को अवहेलना की दृष्टि से देखना बालक का सहमना, फिर उसका पताशे खाते समय आनंद या तृप्ति का भाव। ये समस्त स्थितियाँ आँखों की भाषा को स्पष्ट करती है । भाषा भावों को सहजता से संप्रेषित करती है ;ऑंखें तो बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह देती है, ऑंखें बोलती है, बतियाती है, विविध भावों अनुभूतियों को जीवंत कर देती है। एक बिम्ब उन आँखों में उतर आता है, जो उन स्थितियों घटनाओं और अनुभूतियों को महसूस कराने में सहायक होती है।हिन्दी में तो आँखों पर विविध मनः स्थिति को दर्शाते मुहावरे हैं जो यह सिद्ध करते हैं की आँखों की भाषा कितनी समृद्ध है जो बिना बोले ही बहुत कुछ कह जाती है, संवाद करती है।संवेदनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करने में आँखों का कोई जवाब नहीं, किसी के प्रति दया भाव, कृतज्ञता का भाव,किसी से सहायता की उम्मीद करती निरीह ऑंखें, किसी के प्रति असीम स्नेह और प्यार उड़ेलती ऑंखें, प्रेम भाव से शिकायत करती ऑंखें, बेबसी में बहुत कुछ बयां करती ऑंखें, कनखियों से प्रेमिल भावों को विस्तार देती ऑंखें ,घूरती ऑंखें, किसी बात पर सहमत न होने पर विरोध दर्ज कराती ऑंखें….. ओहो…बिना कुछ बोले भाव संप्रेषण का सामर्थ्य आँखों का वैशिष्ट्य कहा जा सकता है । आँखों पर अनेक गीत ,गजल कहानी आदि के साथ बहुत कुछ लिखा गया है। आँखों का भाव सामर्थ्य अत्यधिक विस्तार लिए हुए है जहाँ विविध अनुभूतियाँ अभिव्यक्त होती हैं ;बस आँखों की भाव भंगिमाएं समझ आनी चाहिए ऑंखें बोलती है। चित्रकार जब अपनी तूलिका से आँखों को उकेरता है तो चित्र जिस सन्दर्भ या उद्देश्य से बनाया गया है, वह भाव जीवंत हो उठता है। जैसे मृगनयनी नायिका के फैले विस्तृत नैत्र ,किसी के दुःख के भाव को प्रकट करने के लिए ये नयनों की अलग भंगिमा प्रस्तुत होती है ,उदास ऑंखें अलग भाव से मन के भीतर की पीड़ा वेदना को प्रकट कर देती है। गोपनीयता के लिए अर्थात् सबके बीच में कुछ ऐसी बात जो सबको नहीं बतानी हो तो ऑंखें अपनी कलाकारी दिखाती हुई उस उद्देश्य की पूर्ति भी चुपचाप करती जाती है और किसी को पता भी नहीं चलता । यह है आँखों का जादू ऊपर बिहारी के दोहे का उल्लेख किया है जहाँ एक साथ देखिये कितने भाव आँखों के द्वारा प्रकट हुए हैं। नायक नायिका समस्त परिजनों के बीच बैठे हुए है लेकिन मुख से एक शब्द बोले बिना ही कितना कुछ और कितने भाव आँखों से प्रकट होते है देखिये कहना, मना करना ,रीझना खिजना, प्रसन्न होना ,लजाना आदि सारे मनोभाव दोनों की आँखों से अभिव्यक्ति पाते हैं पर किसी को पता भी नहीं चलता आँखों के माध्यम से भावों का आदान प्रदान एक क्षण में हो जाता है। सन्देश प्रेषित हो जाता है। ऑंखें बिना कुछ कहे बहुत कुछ कह जाती है यह है, भाषा की ताकत । फिल्मों में तो आँखों पर गीतों की भरमार है जो आँखों के जादुई स्पर्श को दर्शाता है, जो सीधे श्रोताओं के हृदय के भीतर उतरता चला जाता है और आँखों के इस जादू में श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाते है।ऑंखें और संगीत मिलकर गीत की मूल संवेदना को प्रकट कर देते है कुछ गीत यहाँ उल्लेखनीय है देखिये– तेरी आँखों के सिवा रखा क्या है …..।आँखों आँखों में बात होने दो …। ये ऑंखें देखकर हम सारी दुनियां भूल….। ये झुके झुके नैना …। कई बार बातचीत के दौरान हम आँखों से सम्बंधित अनेक भाव की चर्चा करते हैं जैसे नीरस ऑंखें, चंचल नयन बोलती ऑंखें विस्फरित नेत्र स्नेहिल भाव से पूरित ऑंखें आग उगलती ऑंखें ,झुके नयन इन सबके साथ ऑंखें संवाद करती हैं। महसूस करने की बात है ।
डॉ अनिता वर्मा
संस्कृति विकास कॉलोनी- 3
भीमगंजमंडी ,कोटा राजस्थान