
-प्रकाश केवडे-

वो जाते जाते
अपनी अधूरी
दास्तान छोड गये
अपने पीछे किस्से
कहानियों की
दुकान छोड गये।
मेहनत मशक्कत
से पाई पाई जोड़ी थी
वो सारा खजाना और
खाली मकान छोड़ गए।
खूब सजती महफ़िलें
शमा मुस्कुराती शबे रोज
दाद,वाह वाही का
गरजता दालान छोड गये।
नहीं था सुखनवर
उनसा कोई भी
गमगीन शायरों का वो
एक जहान छोड़ गए।
प्रकाश केवडे
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