-बृजेश विजयवर्गीय-

बेसहारा मवेशियों से कोटा को मुक्त कराने के लिए करोडो रुपए खर्च कर पशुपालक आवासीय देवनारायण योजना तैयार कर दी लेकिन समस्या सुरसा के मुंह की तरह बढती ही जा रही है। देवनारायण आवासीय योजना की घोषणा और यहां पशुपालकों को आवास आवंटित करते समय दावे तो ऐसे किए गए थे मानो अब कोटा की सडकों पर मवेशी नजर ही नहीं आएंगे। लेकिन जिन विभागों पर इन मवेशियों को हटाने का जिम्मा है उनके कार्यालय के बाहर ही इनको विचरण करते देखा जा सकता है। आए दिन आवारा मवेशियों की वजह से हादसों के बावजूद न तो प्रशासन जिम्मेदारी समझ रहा है और न पशुपालक। इनके मालिक पशुपालकों को केवल दूध से मतलब है। वे दूध लेने के बाद इन मवेशियों को सडक पर छोड देते हैं क्योंकि न तो उनके पास इनको रखने की जगह है और न ही वे इनके लिए चारे पानी का इंतजाम करना चाहते हैं।यहां तक कि आम नागरिक भी उतने ही जिम्मेदार बने हुए हैं क्योंकि वे इन मवेशियों के लिए प्रति दिन हरे चारे का इंतजाम कर खुद तो धर्म लाभ उठा रहे हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि ये मवेशी न केवल दुर्घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं बल्कि शहर को साफ सुथरा भी नहीं रहने देते। इनके गोबर तथा मूत्र से सडकों पर गंदगी बनी रहती है। वैसे ही कोटा शहर में सफाई का हाल सभी को पता है। स्वच्छता रैंकिंग इसका जीता जागता उदाहरण है।
100% सत्यता बयान करती पोस्ट।दूध वाले दूध कमा रहे हैं धर्म वाले धर्म।जीवन मौत का सामना राहगीर को करना होता है।