
-एडवोकेट अख्तर खान अकेला-

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के विधिक प्रावधानों के तहत, राजस्थान के सभी जिला कलेक्टरों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्यवाही कर, जुर्माना लगाने, दंडित करने के अधिकारों के बाद भी कोई कार्यवाही आज तक नहीं हुई। यह कैसा उपभोक्ता दिवस, कैसा उपभोक्ता संरक्षण है। इस बारे में मीडिया, संस्थाएं सब खामोश हैं। विज्ञापन, डोनेशन के आगे उपभोक्ताओं से लूट, धोखाधड़ी का हर अपराध माफ।
केंद्र सरकार हो, राजस्थान सरकार हो, दूसरी प्रदेश सरकारें हों सभी उपभोक्ताओं के मामले में खामोश हैं। जनता को सरकार के प्रयासों से राहत नहीं मिल रही। केंद्रीय स्तर पर उपभोक्ता क़ानून बनने के बावजूद भी आम उपभोक्ता को तत्काल लाभान्वित करने के मामले में कोई आवश्यक निर्देश नहीं हैं। समितियां, प्राधिकरण नहीं बने हैं। हालात यह है कि टीवी, अख़बारों, सोशल मिडिया, लोकल होल्डिंग्स पर रोज़ मर्रा, सामान्य विज्ञापनों के लावा, भ्रामक, झूंठी लुभावनी जानकारियां, चमत्कारिक इलाज, सस्ते दामों में फ्लेट, मकान, प्ला , वगैरा वगैरा , संबंधित विज्ञापन आते है।। ऐसे भ्रामक विज्ञापनों में विज्ञापनदाता करोड़ों करोड़ रूपये ख़र्च कर फिल्म स्टार , क्रिकेटरों को भी शामिल कर उन्हें मेहनताना देकर, ऐसे विज्ञापन में शामिल करते है। ऐसी हस्तियां पेट सफा , डिटर्जेंट पॉवडर समेत कई तरह के रोज़ मर्रा काम आने वाले उत्पादों का प्रचार करते हैं और उपभोक्ता झांसे में आकर उत्पाद खरीदते हैं और फिर पछताते हैं बिल्डिंग , रियल स्टेट , फाइनेंस कम्पनी , इंश्योरेंस सभी तरह के लोग ऐसे झूंठे, लुभावने, भ्रामक, ठगी करने वाले विज्ञापन के नाम पर रोज़ मर्रा ठगी कर रहे है। कई लोग ठग कर चुप बैठ जाते हैं, कुछ विधिक साक्षरता के अभाव में या विधिक खर्च नहीं होने से चुप रह जाते हैं। कुछ लड़ते भी है तो पुलिस और प्रशासन उनका साथ नहीं देता। कुल मिलाकर क़ानून तो हैं ऐसे लोगों को सज़ा देने के लिए लेकिन ऐसे ठगों को सज़ा नहीं मिलने से , यह सब रोज़ मर्रा उपभोक्ताओं को खुले आम लूट रहे हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के संशोधित विधिक प्रावधानों के तहत अधिनियम की धारा 2 की उपधारा 1 , उपधारा 18 ,उपधारा 28 में ऐसे विज्ञापन ,भ्रामक विज्ञापनों को परिभाषित किया है , जबकि धारा 2 की उपधारा 9 , 22 , 23 ,46 , 47 , मिथ्या वचन , मिथ्या विज्ञापन, लालच ,रियायतें , झूंठे वचन , अनुचित संविदा , अनुचित व्यवहार को परिभाषित भी किया है। इस अधिनियम की धारा 8 , 9 , में जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में ,जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद के गठन की आवश्यक बाध्यता है और अधिनियम की धारा 16 में ऐसे सभी भ्रामक विज्ञापन की समीक्षा करने, उनके खिलाफ कार्यवाही करने के अधिकार देते हुए उन्हें कर्तव्यबद्ध किया है। यानि प्रत्येक जिला कलेक्टर की बाध्यता है कि वह उपभोक्ताओं को ऐसे , विज्ञापन के ज़रिये ठगने या अनावश्यक खरीद फरोख्त कर परेशान करने के अपराध से बचाए। , अब तक राजस्थान या देश के किसी भी जिले में, किसी भी कलेक्टर ने इसे गंभीरता से नहीं लिया है। उन्होंने अपने कर्तव्यों के निर्वहन के तहत , अभी तक किसी भी भ्रामक विज्ञापन की समीक्षा कर, संज्ञान लेकर कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई। जबकि उपभोक्ता क़ानून की धारा 71 ,72 , 79 में ऐसे लोगों के खिलाफ दस लाख रूपये के जुर्माने और दो साल की सज़ा का प्रावधान है।
केंद्र, राजस्थान सरकार को खुद भी हर जिला कलेक्टर को अभियान के रूप में हर अख़बार , हर न्यूज़ चैनल, हर होलेडिंग, सोशल मिडिया अकाउंट पर, प्रकाशित, प्रसारित होने वाले सभी तरह के विज्ञापनों की , सूची तैयार करवाने, हर विज्ञापन की उपभोक्ताओं के साथ भ्रामक,धोखाधड़ी, संबंधित मामले में, आम जनता की सुनवाई के साथ समीक्षा, नुकसान, फायदे, उपभोक्ता को हुए नुकसान, सहित सभी जानकारियों का ब्यौरा तैयार करने, विज्ञापन दाता की सम्पूर्ण जानकारी, विज्ञापन में हिस्सेदार, फिल्म स्टार, क्रिकेटर , या जो भी हैं, उनकी जानकारी रखने, ,क्या ऐसे विज्ञापनों में प्रचार के लिए आने के पहले फिल्म अभिनेता या क्रिकेटर ने ऐसे उत्पादनों का खुद उपयोग कर , उसकी विश्वसनीयता के प्रति संतुष्ट हों गए है। या फिर उन्होंने सिर्फ रूपये कमाने के खातिर जनता के प्रति उनकी गुडविल का दुरूपयोग करते हुए , मात्र उत्पाद को अधिकतम बिक्री करवाने के लिए उपभोक्ताओं को झांसा देकर ऐसे विज्ञापन बनाये है। उसकी जानकारी के भी निर्देश देना केंद्र सरकार का कर्तव्य है। सभी जिला कलेक्टरों को ऐसे विज्ञापनदाताओं, ऐसे विज्ञापन में शामिल लोगों के खिलाफ जुर्माना लगाने और फौजदारी परिवाद पेश कर उन्हें दंडित करवाने के भी निर्देश जारी करना ज़रूरी हो गया है। ऐसे प्रसारण, ऐसे प्रकाशन में शामिल लोगों को भी ऐसे मामले में अभियुक्त बनाकर, दंडित करवाने के निर्देश जारी किया जाना उपभोक्ता क़ानून के तहत विधि सम्मत है।
उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019 के उपभोक्ताओं को ठगने, लूटने, भ्रामक विज्ञापनों से भ्रमित होने सहित सभी परेशानियों से बचाने के लिए, जो जिला कलेक्टर्स को ज़िम्मेदारियाँ दी हैं, उन्हें कर्तव्यबद्ध किया है। उनकी पालना करने के लिए राजस्थान सहित देश के हर जिला कलेक्टर को पाबंद कर प्रतिमाह समीक्षा रिपोर्ट भी लिया जाना जरूरी है। इसमें कोताही बरतने वाले को निलंबित कर सख्त कार्यवाही भी किया जाना चाहिए। ऐसे कार्य के सम्पादन के लिए पूर्व सुप्रिम कोर्ट जज की अध्यक्षता में समाजसेवक, सक्रिय ज़िम्मेदारों की एक प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर स्तरीय निगरानी समीक्षा समिति भी बनाई जाए। ऐसी ही समिति जिला स्तर पर क़ानून के जानकार लोगों को शामिल कर बनाई जाए। ऐसी समिति में, सुचना जनसम्पर्क के अधिकारी भी शामिल हों, जो हर प्रकाशित विज्ञापन , न्यूज़ चैनल के हर प्रसारित विज्ञापन पर नज़र रखकर , उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले विपरीत असर की रिपोर्ट देकर ऐसे लोगों को दंडित करवाने के मामले में जिला कलेक्टर के सहयोगी भी बने और कलेक्टर के इस क्षेत्र में कर्तव्यों के प्रति लापरवाही, चुप्पी के निगराकार भी बनें। ताकि देश के सभी उपभोक्ताओं को क़ानून के अनुरूप इंसाफ मिल सके।
(लेखक एडवोकेट, पत्रकार एवं एक्टिविस्ट हैं। यह उनके निजी विचार हैं)


















सरकारें उपभोक्ताओं के संरक्षण के नियम बनाकर इतिश्री कर लेती है इसके बाद नियमों के कार्यान्वयन, तथा निगरानी के लिए जिम्मेदार आलीशान दफ्तरों से बाहरनिकलकर फील्ड में नहीं आते हैं इसलिए भ्रामक विज्ञापन फैलाने वाली संस्थाएं और कलाकार देश का नंबर वन डिटरजेंट कहकर जेब भरते रहते हैं