एक छोटी सी गलती…

akh
प्रतीकात्मक फोटो अखिलेश कुमार

-कृतिका शर्मा-

kratika sharma
कृतिका शर्मा

मायरा नाम था उसका। सबकी तरह एक आम इंसान। बस सपने बड़े थे उसके। यही शायद उस से गलती हो गयी। क्योंकि हमारे समाज में आज भी कहीं ना कहीं यही रीत है ना कि लड़की इतनी पढ़ी लिखी हो कि बस उसकी शादी हो जाए, लड़की गोरी होनी चाहिए, पतली होनी चाहिए और यारी दोस्ती तो तौबा तौबा होनी ही नही चाहिए।
आज करीब सुबह 10 बजे हमारे पडौस की गली के एक घर के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गयी। पास वाली गली के एक सज्जन ने पूछा कि क्या बात हो गयी?तो उन्हे बताया गया कि मायरा ने आत्महत्या कर ली।
फिर क्या था? वही जो समाज की रीत है। कि सब ने बातें बनाना शुरु किया। होना ही था ये तो, बाहर आना जाना बहुत था इसका तो, लड़को से भी बहुत दोस्ती थी, कुछ ज्यादा ही फ्रेंक थी। पता नहीं क्या चक्कर रहा होगा जो ऐसे आत्महत्या की नौबत आ गयी। हमने तो पहले ही कहा था कि बिटिया को इतनी छूट मत दो। पढ़ाई पूरी हो गयी तो शादी करवा दो।लेकिन असल बात तो किसी को पता ही नही थी कि मायरा काफी दिनों से परेशान थी।
मायरा एक फैशन डिज़ाइनर थी। वो अपने सपनो को पूरा करने के लिए मुंबई जाना चाहती थी। लेकिन उसके घर वालो ने उसको ये कह कर रोक लिया कि, तुम कहीं नहीं जाओगी। बहुत कर ली तुम ने मनमानी। अब बस तुम सिर्फ शादी करोगी। पता नहीं लोग क्या क्या कह रहे हैं, इतनी बातें बन रही है, समाज मे हमारी नज़रे शर्म से नीची ही रहती है, कोई कुछ पूछता है तो हमारे पास जवाब नही होता, लोग हंसते है हम पर।
मायरा ने बहुत कोशिश की। उन्हे समझाने की , लेकिन उसके माता पिता ने एक नही सुनी। उसका घर से निकलना बंद करवा दिया। बाहर उसका बाजार मे एक बुटिक था वो भी बंद हो गया। मायरा अब अपने अंदर ही अंदर घुट रही थी। उसको लगा जैसे सब ख़तम। देखते ही देखते मायरा डिप्रेशन मे जाने लगी।
उसका रिश्ता भी पास के ही एक शहर मे हो गया। लेकिन उनकी भी यही डिमांड थी कि बहु हमें सिर्फ पढ़ी लिखी चाहिए लेकिन नौकरी नही करवानी। उसने अपने माता पिता के खातिर ये समझौता भी कर लिया।
लेकिन मायरा खुद को कैसे समझाती? जिसको अपनी ज़िंदगी मे एक फैशन डिज़ाइनर बनना था, जिसको एक NGO खोलना था। ऐसी लड़कियों के लिए, जिन्हे ज़िंदगी मे बहुत कुछ करना है लेकिन समाज के डर से और माता पिता के बदनामी ना हो समाज मे इस डर से कुछ नही कर पाती। उसको बदलाव लाना था समाज मे। लेकिन मायरा को लगा कि वो अब हार चुकी है। सब कुछ ख़तम सा लग रहा था उसको। उसने सारी रस्मे तो निभाई। लेकिन शादी वाले दिन सुबह ही उसने अपनी जान दे दी।
उसके पास एक नोट मिला, कि मेरी मौत का ज़िम्मेदार मेरे माता पिता नहीं है, बल्कि ये पूरा समाज है। जिसने मुझे कभी आगे नहीं बढ़ने दिया। जिसने मेरे पैरो मे रीति रिवाज़, लोग क्या कहेंगे की बेड़ियाँ डाल दी। मेरे माता पिता को हर मोड़ पर बेइज़्ज़त किया। और मै कभी हारने वालो मे से नहीं थी। इसलिए हारने से ज्यादा आसान मुझे मरना लगा।
ऐसे एक 23 साल की मायरा ने अपनी जीवन लीला ख़तम कर ली। और ना जाने कितनी मायरा जैसी लड़किया आज भी घुट घुट के मर रही है। ये कैसा समाज है और कैसी रीतियाँ। अगर लड़का 30 की उम्र मे शादी करे तो ठीक, लेकिन लड़की की शादी तो वही 22 से 25 के बीच हो जानी चाहिए। हकीकत तो ये है कि ये समाज को कोई फर्क नही पड़ता कि आप ज़िंदा है तो भी आप के रहन सहन पर बाते बनानी है और आप मर गये तब भी बातें बनानी है। यह समाज तब तक बातें बनाएगा जब तक आप समाज के रीति रिवाज़ो के विरुद्ध चलोगे।
लोग कहते है कि हमारा हिंदुस्तान 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हुआ था। लेकिन हिंदुस्तान आज भी बंधा हुआ है समाज कि कुरीतियों में।

(लेखिका अध्यापिका एवं एंकर हैं, यह उनके विचार हैं)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments