वाह चीज, आह चीज़

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-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

पनीर का आविष्कार कब और कहां हुआ यह तो जानकारी नहीं है, पर यह अवश्य पता है आम घरों की रसोई में रोजमर्रा के खाने में पनीर की एंट्री अस्सी के दशक में भी नहीं हुई थी। लेकिन जितना पनीर आज बनाया खाया जाता है, हमारे समय में केवल शादी पार्टी में बनता था, और वह भी टोटल पनीर नहीं, मटर के साथ पनीर। उसी में खुश हो जाते। और परिवार यदि पैसे में ठीकठाक है तो दामाद के ससुराल में आगमन पर। घर में फिर उस बहू की पूछ होती, जिसे पनीर की सब्जी बनानी आती थी। आज यदि आंकड़ों में देखें तो दूध का उत्पादन उतना नहीं है, जितना दूध के फूड प्रोडक्ट्स (दूध, दही, छाछ, पनीर, भांति भांति के चीज़, घी, मिठाईयां) प्रयोग किए जाते हैं। इसका मतलब बहुत कुछ नकली है। फिर भी हजम किए जा रहे हैं और खुश हैं कि सेहत और स्वाद दोनों बन रहे हैं। शायद ही कोई दिन जाता होगा जब चीज़ या पनीर उदरस्थ ना हो। एक जानकारी के मुताबिक #चीज़ लगभग तीन सौ किस्म का, विभिन्न स्वाद वाला चलन में है। #चीज़ का प्रयोग इतना अधिक बढ़ गया है कि खा खा कर पेट की समस्याओं से जूझ रहे हैं। कइयों को पता भी नहीं है #चीज को किस तरह प्रयोग करना है, फिर भी सब मास्टर शेफ बने हुए हैं। और एक हम, पुराने समय में चीज का अर्थ पनीर पढ़ पढ़ कर ही बड़े हो गए। अब पता चला इस चीज (पनीर) और उस चीज़ (सूखा व फ्रेश मोजेरेला चीज, क्रीम चीज, कॉटेज चीज, स्लाइस वाला चीज, क्यूब चीज और न जाने क्या क्या) में कितना फर्क है। ये तो बस पनीर की कुछ यादें हैं, जो नई और पुरानी पीढ़ी के अंतर को दर्शाती है।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान

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