
-विवेक कुमार मिश्र-

जर्द पत्ते यूं रंग गये हैं कि पेड़ पूरा नया लगने लगा। पाकड़ का पेड़ है बरगद कुल का पत्तियां एकदम से टटकी और नई हैं ललाई रंग लिए एक ऐसा ललछौंह कि बस देखते रहिए टहलते टहलते रात में पेड़ को इस तरह रंगते देख आश्चर्य सा हुआ। इस सौंदर्य पर बस मुग्ध हुआ था सकता है । प्रकृति हर क्षण अपने को रंगती है नये सिरे से जीती है । यह जो क्षण है इसे जी लीजिए यदि यह नहीं जीया तो फिर क्या किया । यहां रंग जीवन और सौंदर्य की इबारत इस तरह लिखी होती है कि बस देखते ही रहिए। पत्तियां इस तरह हैं कि जैसे पहली बार इन्हें देखा जा रहा है और जब देखा जा रहा है तो इसे जतन करना सहेज कर रखना ही जीवंत हो जाना होता है । इस तरह चलते चलते आप जीवन से, दुनिया से, अपने आसपास से संवाद और साक्षात्कार करते चलते हैं । यह चलना ही सही मायने में जीवन है और इस गति को सहेज कर रखते हुए हम सब अपने पास रंग भी रखते हैं टटकापन भी रखते और नयापन। इस तरह इस रंग में जो आसपास है इतना कुछ होता कि संसार ही उमड़ कर आ गया हो । और इन रंगों को सम्भाल कर अपने पास रखते हुए जीवन को और सुंदर बना लेते हैं ।
– विवेक कुमार मिश्र
सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002