-विष्णु देव मंडल-

(स्वतंत्र पत्रकार चेन्नई)
चेन्नई। हारते हारते हम कभी-कभी जीत भी जाते हैं चाहे इसे मेहनत समझिए या संयोग! कमोबेश कांग्रेस पार्टी की हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की जीत कुछ ऐसा ही इशारा कर रही है। कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में बहुमत की सरकार बनाई है। रविवार को शिमला में सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मुख्यमंत्री पद का शपथ ली। इस समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा समेत कई कांग्रेसी नेता मौजूद रहे। इन नेताओं को समारोह में रहना भी चाहिए। कारण डूबते को तिनके का सहारा जो मिल गया। वैसे कांग्रेस ने बहुत कम मार्जिन से भाजपा को शिकस्त दी जबकि गुजरात में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह हार गई। कांग्रेस संगठन ने गुजरात चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया और नतीजा सिफर निकला।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के एमसीडी चुनाव और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एंटी इनकंबेंसी के कारण शिकस्त खा गई। आगामी लोक सभा चुनाव 2024 में होने हैं और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। राहुल गांधी भारत जोडों यात्रा पर हैं। उनको इस यात्रा से बहुत अपेक्षाएं है लेकिन दिनोदिन देश में कांग्रेस की घटती लोकप्रियता जहाँ कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है वहीं लोकतंत्र के लिए भी ठीक नहीं है,
वैसे तो पिछले कुछ सालों से राहुल गांधी केंद्र सरकार को महगाई, बेरोजगारी, गरीबी, भुखमरी, विदेश नीति पर घेरने का कोशिश करते रहे हैं। बावजूद इसके वह कांग्रेस के लिए वोट नहीं जुटा पाते। इस विषय पर देश के अलग अलग अलग हिस्से में रह रहे हैं लोगों से रायशुमारी की जो इस प्रकार सामने आया है..
– कांग्रेस पार्टी के लिए हिमाचल प्रदेश की जीत संजीवनी है, लेकिन संगठन में गुटबाजी और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का कमी के कारण कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी लेने का पुरजोर कोशिश कर रही है।
यह बात दीगर है कि कांग्रेस पार्टी ने काफी मशक्कत के बाद परिवार से बाहर के अध्यक्ष मल्लिकाअर्जुन खरगे को बनाया है, लेकिन कोई भी फैसला अभी भी नेहरू गांधी परिवार ही लेते हैं। मसलन हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का चयन भी प्रियंका गांधी के निर्देशानुसार ही किया गया है। कांग्रेस यदि अपनी खोई हुई गरिमा वापस चाहती है तो उसे पूरी तरह से नेहरू गांधी परिवार से मुक्त होना पड़ेगा। पार्टी को गुटबाजी के बिना सतह पर आए ही समस्या सुलझाने और पुराने नेताओं की जगह नई चेहरे को मौका दिया जाना चाहिए।
ईश्वर करूण, साहित्यकार चेन्नई!
-कांग्रेस पार्टी अब जमीन से कट चुकी है, हिमाचल प्रदेश का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि 5 सालों के बाद सरकार बदल दी जाती है इसलिए बहुत ही मामूली अंतर से कांग्रेस हिमाचल प्रदेश में जीत दर्ज की है।
लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व राहुल गांधी और प्रियंका गांधी में वह इच्छाशक्ति और जोश नहीं दिखता जैसा कि नरेंद्र मोदी में दिखाई देता है। कांग्रेस पार्टी गुटबाजी का भी शिकार है। सभी बड़े राज्यों में कांग्रेस कमजोर है ऐसे में बिना क्षेत्रीय दल की मदद से कांग्रेस की वापसी कमोबेश 2024 तक नजर नहीं आती।
विशाल ठाकर, बिजनेसमैन, इंदौर, मध्यप्रदेश।
-कांग्रेस पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाई है लेकिन कांग्रेस आज भी गुटबाजी से जुझ रही है। मल्लिकार्जुन खरगे भले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन पार्टी का कोई भी फैसले राहुल गांधी या फिर प्रियंका वाड्रा ही लेती है। पार्टी के सभी सदस्य आला दर्जे के नेता अभी भी राहुल और प्रियंका को ही अपना नेता मानते हैं। ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन का उम्मीद बहुत ही कम है। 2024 तक कांग्रेस पार्टी इस स्थिति में नहीं रहेगी जिससे वह भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में आने से रोक पाए।
पंकज कुमार झा, सीतामढी बिहार
– अभी कांग्रेस पार्टी की हालत भारतीय जनता पार्टी शिकस्त देने लायक नहीं है। कुछ गिने-चुने राज्यों में ही कांग्रेस का संगठन मजबूत है।
भारत के सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा आदि राज्यों में कांग्रेस के हाथ कमजोर हैं। पूर्वाेत्तर राज्यों में भी कांग्रेस के जगह भारतीय जनता पार्टी मजबूत हालत में है। ऐसे में आगामी 2024 में बिना क्षेत्रीय दलों के सहयोग से कांग्रेस पार्टी भारतीय जनता पार्टी जैसी पार्टियों को परास्त नहीं कर सकती। महज अरुणाचल प्रदेश के चुनाव जीतने से यह कहना बेहद कठिन है कि कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा जैसी मजबूत जनाधार वाली पार्टी को हरा सकती है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एवं अन्य क्षेत्रीय दलों से तालमेल से ही भाजपा को रास्ता रोका जा सकता है।
राजेश यादव, किसान, वाराणसी,
-कांग्रेस के साथ विडंबना यह है कि वह तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के नाम से बहुसंख्यक हिंदुओं के दिल से बाहर निकल गई है।ं राहुल गांधी की ओर से बीजेपी पर तो सांप्रदायिक सद्भावना बिगड़ने की आरोप लगाया जाता है। लेकिन आतंकवाद क्षेत्रवाद भाई भतीजावाद पर वह कुछ नहीं बोलते। देश में छिटपुट आपराधिक घटनाओं पर भी वह भारत सरकार पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाते हैं। सेना पर भी सवाल उठाते हैं। इसलिए भारत के बहुसंख्यक हिंदू कांग्रेस से नाराज चल रहे हैं। यही वजह है कि कांग्रेस के लिए वापसी आसान नहीं होगी।
विमलेश पांडे, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश