
-बांग्लादेश की अंतरिम सरकार किस राह पर जाएगी–जमात के प्रभाव में या चीन की शह पर चलेगी
-द ओपिनियन डेस्क-
बांग्लादेश में नई अंतरिम सरकार सत्ता संभाल रही है। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस इसके मुखिया हैं। मुहम्मद यूनुस एक अर्थशास्त्री और बैंकर हैं। उन्हें माइक्रोक्रेडिट बाजार विकसित व ग्रामीण बैंक के माध्यम से हजारों लोगों को गरीबी से बाहर लाने के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था और बांग्लादेश में छोटे बैंको के माध्यम से लोगों की गरीबी दूर करने में उनका अहम योगदान माना जाता है। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ उनके रिश्तों में खटास आ गई थी और फिर दोनों के रास्ते अलग अलग हो गए। अब देखना है कि यूनुस किस एजेंडे पर आगे बढ़ते हैं। क्योंकि मौजूदा तख्ता पलट में जनविद्रोह के सेना की भी साथ बड़ी भूमिका रही है। जब सेना आंदोलनकारियों के समर्थन में आ गई तो शेख हसीना के पास सत्ता छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अब देखना यह है कि यूनुस देश में लोकतांत्रिक सरकार की बहाली के लिए क्या पहल करते हैं। वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की दिशा में आगे बढ़ते हैं या सेना अपना कोई एजेंडा आगे बढाती है, यह कुछ दिनों बाद साफ होने लगेगा। लेकिन एक बात साफ है इस अंतरिम सरकार पर जमात ए इस्लामी व चीन समर्थक ताकतों की छाया रहेगी। ऐसे में क्या यूनुस भारत के साथ रिश्तों को सामान्य बना पाएंगे या वे किसी ताकत के इशारे पर टकराव का रास्ता अपनाएंगे, यह महत्वपूर्ण होगा। यदि यूनुस टकराव का रास्ता अपनाते हैं तो वह जानते हैं कि उनको इसका क्या नुकसान हो सकता है। हालांकि पद संभालने से पहले उन्होंने
द इकोनॉमिस्ट में लिखे एक लेख में भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों का जिक्र किया है और कहा है कि भारत के साथ घनिष्ठ मित्रता को फिर से शुरू करने के कई अवसर जल्द ही आएंगे। हालांकि वे शेख हसीना को भारत के समर्थन को बांग्लादेश के लोगों की भावनाओं के अनुरूप नहीं मानते। उनका मानना है कि इससे बांग्लादेश के लोगों में नाराजगी है। लेकिन शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद हुई हिंसा व अराजकता को देखें तो क्या बांग्लादेश की जनता इसे सही मानती है। जिस तरह से हिंदुओं के घर जलाए गए और उनको निशाना बनाया गया यदि यह जारी रहता है तो फिर इस तख्ता पलट को कैसे सही ठहराया जा सकता है। अब देखना यह है कि यूनुस हिंदुओं के खिलाफ हिंसा पर अंकुश लगा पाते हैं या नहीं।
यूनुस ने यह भी कहा कि अंतरिम सरकार का अगला कदम सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करना और यह सुनिश्चित करना होगा कि कुछ महीनों के भीतर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हों। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस प्रक्रिया का समर्थन करने में अन्य लोग भी उनके साथ जुड़ेंगे। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव ही सत्ता को सही हाथों में सौंपने का सबसे बेहतर साधन है। हिंसा के बल पर सत्ता पर काबिज होना जनभावना का प्रतीक नहीं होती। अब यदि अंतरिम सरकार में जमात ए इस्लामी का प्रभाव बढ़ता है तो बांग्लादेश को कट्टरपंथ पर आगे लेके जाएगी।हिंदुओं के खिलाफ हो रही हिंसा जमात जैसे संगठनों की शह के बिना जारी नहीं रह सकते। यूनुस के सामने यह सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती होगी। दूसरी ओर अमेरिका जैसी पश्चिम ताकतों का रुख भी अब अहम होने वाला है। चीन की बढ़ती ताकत के कारण अमेरिका बंगाल की खाड़ी में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। हालांकि वह यूनुस के नाम पर सकारात्मक रुख दिखा रहा है। उसने कहा है कि वह नई अंतरिम सरकार के साथ मिलकर काम करने का इच्छुक है।