गुजरात के भाजपा मॉडल को अपना सकती है राजस्थान में कांग्रेस

कांग्रेस का इस बात पर भी ज्यादा जोर रहने वाला है कि अब जब कभी भी अगले विधानसभा चुनाव की बात हो तो उस समय फ़ैसलों पर बीते चार सालों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच के विवाद की छाया भी नही पड़े और यह केवल अतीत की बात ही रह जाए। इस मसले पर अब पार्टी और अधिक चर्चा करने के पक्ष में नहीं है और इसे अतीत का स्याह पहलू मान कर भुला देना चाहती है क्योंकि अगर यह मसला जिंदा रहा तो अगले चुनाव के नतीजों पर निश्चित रूप से इसका बुरा असर पड़ना तय है

ashok gehlot
अशोक गहलोत फाइल फोटो

-आागमी विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण

-कृष्ण बलदेव हाडा-

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कृष्ण बलदेव हाडा

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हमेशा कहते हैं कि बीते चार सालों में राजस्थान में प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना सहित अन्य कई क्षेत्रों में जन सुविधाओं के लिए इतनी बेहतरीन योजनाओं का क्रियान्वयन किया है कि वे मिसाल बन गई हैं। अन्य राज्यों को राजस्थान को मॉडल मानकर इन योजनाओं को अपनाना चाहिए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की योजनाओं को अन्य राज्य मॉडल मानकर अपनाएंगे या नहीं, यह तो कहना मुश्किल है, अलबत्ता कांग्रेस जरूर इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए गुजरात के एक खास राजनीतिक मॉडल को अपना सकमी है। कांग्रेस टिकट वितरण के मसले पर भाजपा के उस मॉडल को जरूर अपना सकती है जिसे हाल ही में सम्पन्न गुजरात विधानसभा चुनाव के समय अपना कर जीत का नया कीर्तिमान स्थापित किया है और इस मॉड़ल के तहत पार्टी ऎसे मंत्रियों और विधायकों का टिकट काट सकती है जो बीते चार सालों में पार्टी के कार्यक्रमों के कभी भी हिस्सेदार नहीं बने और न ही उन्होंने इस दौरान कार्यकर्ताओं की कोई सुध ली।
भाजपा ने पार्टी से खिंचे-खिंचे और अलग-थलग से रहने वाले ऐसे मंत्री विधायकों के प्रति इसी मॉडल को गुजरात विधानसभा चुनाव में अपनाया। भारतीय जनता पार्टी ने टिकटों का बंटवारा करते समय ऐसी कई मंत्रियों और विधायकों का पत्ता काट दिया था जो पार्टी के राजनीतिक हितों के अनुरूप कार्य कर पाने में पूरी तरह से विफल साबित हुये थे। राजस्थान में कांग्रेस इसी तर्ज पर अगले विधानसभा चुनाव के समय कार्यकर्ताओं से अलग-थलग रहने वाले कई नकारा मंत्रियों और मौजूदा विधायकों का टिकट काटकर नए और युवा चेहरों तथा महिलाओं को टिकट देने में प्राथमिकता दे सकती है।
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कीे राजस्थान में अभूतपूर्व सफलता के बाद 25 जनवरी से शुरू किए जा रहे हाथ से हाथ जोड़ो अभियान और उसकी तैयारियों को इसी रूप में देखा जा रहा है और राजस्थान में अजय माकन के स्थान पर नए नियुक्त किए गए पार्टी प्रभारी पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी इसी आशय के स्पष्ट संकेत दिए हैं कि कांग्रेस इस बार हर पांच बरस बाद राजस्थान में सरकार बदल जाने की रवायत को ही बदल देना चाहती है और पार्टी का यह लक्ष्य है कि प्रदेश में फिर से लगातार दूसरी पारी खेलने के लिए कांग्रेस की सरकार बने। इसके लिये इस रणनीति को अमलीजामा पहुंचाने को यह बहुत जरूरी है कि इस मामले में भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात में जो मॉडल अपनाया है, जरूरत पड़े तो पार्टी उसे भी अपनाने में नहीं हिचकिचाए व नकारा मंत्रियों और पार्टी के ऎसे ही विधायकों के टिकट काट दिए जाएं और इसे महज इसलिए खारिज नहीं किया जाए कि यह उनके प्रतिद्वंदी भारतीय जनता पार्टी की मॉडल रणनीति है।
कांग्रेस का इस बात पर भी ज्यादा जोर रहने वाला है कि अब जब कभी भी अगले विधानसभा चुनाव की बात हो तो उस समय फ़ैसलों पर बीते चार सालों में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच के विवाद की छाया भी नही पड़े और यह केवल अतीत की बात ही रह जाए। इस मसले पर अब पार्टी और अधिक चर्चा करने के पक्ष में नहीं है और इसे अतीत का स्याह पहलू मान कर भुला देना चाहती है क्योंकि अगर यह मसला जिंदा रहा तो अगले चुनाव के नतीजों पर निश्चित रूप से इसका बुरा असर पड़ना तय है। इन्हीं कोशिशों के तहत पार्टी आलाकमान प्रदेश नेतृत्व खासतौर से उन मंत्रियों एवं कांग्रेस नेताओं पर लगातार लगाम रखने की तैयारी कर रही है जो गाहे-बगाहे किसी विवादित मसले पर बयान देकर विवाद को जिंदा बनाए रखने की कोशिश करते रहतं हैं। इनमें कुछ मंत्री भी है और खास बात यह कि इनमें कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जिनमें से कुछ गहलोत के नजदीक है तो कुछ सचिन पायलट के।
उम्मीद की जा रही है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले टिकटों के बंटवारे के समय ऐसे कुछ मंत्रियों को टिकटों से हाथ धोना पड़ सकता है जिनकी भूमिका पार्टी में रहते हुए भी पार्टी विरोधी नेता के रूप में बन रही है। ऐसे मसलों पर विश्लेषक अकसर राजेंद्र सिंह गुढ़ा जैसे मंत्रियों के मंत्री बने रहने पर ही सवाल खड़े करते रहे हैं कि आखिर वे उस सरकार में मंत्री क्यों हैं जिसके मुखिया और अन्य वरिष्ठ मंत्रियों को वे अकसर अपनी आलोचना के निशाने पर बनाए रखते हैं। इसके बावजूद भी वे मंत्री बने हुए हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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