
-धीरेन्द्र राहुल-

गहलोत जी,
हाड़ौती के साथ आप इससे बुरा कुछ नहीं कर सकते थे ?
सारे राजस्थान में जब लोग घी के दीये जला रहे हैं, तब हाड़ौती अंचल को जिले से वंचित कर आपने न्याय नहीं किया। यहां हर कोई अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। कम से कम तीन जिले रावतभाटा- रामगंजमण्डी, छबड़ा और भवानीमंडी तो बनाए ही जाने चाहिए थे।
पहला जिला जो राजस्थान में सबसे ज्यादा डिजर्व करता है , वह है रावतभाटा।तकनीकी तौर पर रावतभाटा चित्तौडगढ़ जिले में आता है लेकिन वहां पूर्व में जब भी प्रशासनिक दृष्टि से इमर्जेंसी के हालात पैदा हुए हैं, तब कोटा के ही एसपी, कलेक्टर, संभागीय आयुक्त और आईजी ने जाकर हालात संभालें। क्योंकि कोटा रावतभाटा से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर है। जबकि चित्तौड़गढ़ 100 और उदयपुर 200 किलोमीटर दूर हैं।
वहां के बच्चे कोटा पढ़ने आते हैं। देश की जानी मानी फिल्मों की पार्श्व गायिका श्रेया घोषाल कोटा के ही रामपुरा बाजार स्थित संगीत स्कूल की छात्रा रही है। वे रावतभाटा से रोज कोटा आती जाती थी।
देश और दुनिया में कहीं जाने के लिए रावतभाटा के लोग कोटा से ही आते जाते हैं। ईलाज और खरीदारी के लिए कोटा आते हैं। यहां तक की कई परिवार तो सब्जी और किराना खरीदने कोटा आते हैं। रावतभाटा आज एक न्यूक्लियर सिटी है, सामरिक दृष्टि से संवेदनशील शहर है। रावतभाटा के साथ बेगूं तहसील, भैसरोड़गढ़ पंचायत समिति, बूंदी जिले के अलग थलग पड़े जवाहर सागर पुलिस स्टेशन, ढाबी- धनेश्वर खनन क्षेत्र, उधर रामगंजमण्डी, चेचट, मोडक, सुकेत, ढाबादेह को मिलाकर रावतभाटा को नया जिला बनाया जा सकता था। इससे रिमोट एरिया के लोगों को सच्चे अर्थों में राहत मिलती। नई दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेस वे बनने के बाद रावतभाटा वैसे भी चेचट होकर मुख्य धारा में आने वाला है।
दूसरा जिला छबड़ा, छीपाबड़ौद, मनोहरथाना, सारथल, कवाई और सालपुरा को मिलकर बनाया जाना चाहिए था। छबड़ा को जिला मुख्यालय बनाया जा सकता था। ये समूचा इलाका जिला मुख्यालय से बहुत दूर है और विकास की दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ भी है। छबड़ा में कलेक्टर बैठता तो यह तेजी से आगे बढ़ता।
तीसरा जिला भवानीमंडी, पचपहाड़, सुनेल, डग, चौमहला, मिश्रौली को मिलाकर बनाया जा सकता था। इसका जिला मुख्यालय भवानीमंडी होता। यह समूचा इलाका सड़क, रेलमार्ग से अच्छी तरह कनेक्ट है।
ये तीन नए जिले बनते तो यहां नए मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग काॅलेज खुलते। मिनी सचिवालय आकार लेते। जिलास्तर की 6 से ज्यादा अदालतें खुलती, नए दफ्तर खुलते और तीनों कस्बों में सड़कें बनती। जमीनों के दाम बढ़ते। क्रयशक्ति रखने वाले हजार अधिकारी – कर्मचारी रहने आते तो बाजार में भी स्फूर्ति आती। सबसे बड़ी बात अपने काम के लिए लोगों को बाहर नहीं भटकना पड़ता।
इसके लिए हमारे विधायक, मंत्री और सांसद भी बराबर के दोषी हैं जिन्होंने कभी आवाज ही नहीं उठाई। ये लोग बेगानी शादी में अब्दुला दीवाने की तरह विधान सभा में टेबलें कूट रहे थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। लेखक की फेसबुक वाल से साभार )