
-द ओपिनियन-
मल्लिकार्जुन खडगे कांग्रेस के नए निर्वाचित हो गए हैं। चुनाव नतीजे उम्मीद के अनुसार ही आए हैं। कोई चमत्कार नहीं हुआ। लेकिन यह चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक कहे जाएंगे। दूसरी बार कोई दलित नेता पार्टी का अध्यक्ष पद संभालेगा। यह कोई छोटामोटा कदम नहीं है।137 साल लम्बे कांग्रेस के इतिहास में दूसरी बार कोई इस वर्ग सें कांग्रेस का अध्यक्ष बना है। आप नजर फैलाकर देखलें कितनी राष्टीय व राज्य स्तरीय पार्टियों के अध्यक्ष दलित वर्ग से हैं। बसपा के अलावा आपको शायद ऐसी किसी पार्टी का नाम याद ही नहीं आए। इसलिए यह चुनाव दो दृष्टि से ऐतिहासिक कहा जाएगा। एक कांग्रेस में मतदान के जरिए नया अध्यक्ष चुना गया है और दूसरा यह कि दलित समुदाय का कोई नेता इस पद पर निर्वाचित हुआ है भारी बहुमत के साथ। ऐसे में कांग्रेस के लिए खडगे का चुनाव एक नई राजनीतिक पूंजी बन सकती है। ऐसा लगता है खडगे का इस पद के लिए नामांकन कांग्रेस की किसी दीर्घकालीन रणनीति का हिस्सा है। कांग्रेस अध्यक्ष के चुनावों के बीच ही कांग्रेस ने बृजलाल खराबी को उत्तर प्रदेश प्रदेश कांग्रेस का नया अध्यक्ष नियुक्त किया था। खराबी भी दलित समुदाय से आते हैं। वह बसपा से कांग्रेस में आए थे। उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटें हैं लेकिन वहां कांग्रेस की हालत दयनीय है। इससे पहले पार्टी ने हरियाणा में भी एक दलित समुदाय के नेता उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाया।यानी पार्टी अपने खिसके हुए आधारको फिर से पाना चाहती है। इस दृष्टि से खडगे का चुनाव मैदान में आना कांग्रेस की किसी दीर्घकालीन रणनीतिक का हिस्सा लगता है। खडगे एकअनुभवी नेता हैं। अब देखना यह है कि वह पार्टी में किस तरह की अपनी टीम बनाते हैं। क्योंकि राजनीतिक धाराएं चुनावों में जातीय समीकरणों में उलझ जाती हैं। खडगे को भी कांग्रेस का खोया जानाधार का वापस लाने के लिए ऐसे ही कई सामाजिक समीकरण बनाने होंगे। इसके साथ ही पार्टी को छोडकर जाने का जो सिलसिला चल रहा है उसको भी थामना होगा। एक एक कर बडे अनुभवी नेताओं का पार्टी छोडकर जाने से पार्टी का कमजोर होना तय है।इसके अलावा एक बात यह भी है कि खडगे जब अपनी नई टीम बनाएंगे तब उसमें राहुल की क्या भूमिका होगी। खडगे यह बात पहले ही कह चुके हैं कि गांधी परिवार से सलाह व सहयोग लेने में उन्हें कोई शर्म नहीं होगी। यह खडगे की परिपक्वता ही परिचायक है। किसी भी पद पर न रहते हुए भी कांग्रेस में गांधी परिवार की अहमियत कम नहीं हो जाती। आज भी पार्टी उनके पीछे खडी नजर आएगी। इसलिए राहुल गांधी की भूमिका बहुत अहम होगी। वे अभी भारत जोडो यात्रा में जुटे हैं। उनकी इस यात्रा के बीच गुजरात व हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अब सवाल उठता है कि राहुल क्या यात्रा के बीच इन चुनावी राज्यों में पार्टी की नैया पार करने के लिए प्रचार अभियान में जुटेंगे या यह काम सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी पर छोड दिया जाएगा। कांग्रेस को फिर से ताकतवर बनाने के लिए खडगे को एक ऐसी टीम चाहिए होगी जो अनुभवी होने के साथ साथ कुशल रणनीतिकार भी हो और युवाओं की उर्जा भी साथ हो। शशि थरूर ने चुनाव के दौरान इस दृष्टि से एक हलचल जरूर पैदा कर दी थी जैसे किसी शांत ठहरे जल में किसी ने पत्थर फेंक दिया हो। उम्मीद है कांग्रेस में भी कोई इस चुनाव के बाद कोई सियासी लहर उठेगी। लहर बदलाव की। थरूर ने तो नारा ही बदलाव का दिया था। अब देखना है नवननिर्वाचित अध्यक्ष खडगे पार्टी में आए इस ऐतिहासिक बदलाव मोड को क्या आयाम दे पाएंगे।