बिहार की राजनीति में फिर मंडल-कमंडल के द्वंद की आहट

महागठबंधन के बीच दरार पड चुकी है। राष्ट्रीय जनता दल को या महसूस होने लगा है कि नीतिश कुमार कभी भी पलटी मार सकते हैं, इसलिए राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर कमंडल बनाम मंडल की राजनीति शुरू कर दी है

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नीतीश कुमार एक कार्यक्रम में। फोटो सोशल मीडिया

-विष्णुदेव मंडल-

विष्णु देव मंडल

जब राजनीतिज्ञ आम जन की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतरते या फिर अपने वादे पूरे करने की स्थित में नहीं होते हैं तो जनता को बरगलाने का प्रयास करते हैं। कमोबेश बिहार में कुछ ऐसा ही चल रहा है। फिलहाल बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, जदयू, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम आदि पार्टियों के गठबंधन ने पिछले पांच माह से सत्ता संभाल रखी है। लेकिन यह सरकार इन दिनों आमजन की आकांक्षाओं के बजाय विवादास्पद बयानवाजी में ही उलझी हुई है।

सूत्रों के मुताबिक आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव एजेंडा सेट करने में लगे हुए हैं। वही पुराने मुद्दे वही पुराने अंदाज यानी अगड़ी बनाम पिछड़ी जाति की राजनीति। जिसकी बदौलत लालू यादव 15 साल बिहार की सत्ता में रहे थे। जिसे माय समीकरण का नाम दिया गया था। लेकिन नीतीश कुमार ने उनके माय समीकरण के खिलाफ बाप समीकरण (अगडा-ओबीसी) को इजाद किया। उन्होंने लालू यादव को सत्ता से बेदखल किया था। लेकिन नीतीश कुमार द्वारा बार-बार पलटी मारने के कारण वह बिहार के मतदाताओं के सामने अप्रासंगिक हो गए हैं। उन्हें लोग पलटू राम कहने लगे हैं।

महागठबंधन टूटने के कगार पर !

गौरतलब है कि जहां राष्ट्रीय जनता दल के नेता और मंत्री अलग अलग मंच से धर्म जाति के खिलाफ बयान दे रहे हैं। वहीं जदयू राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं मंत्रियों के बयानों के खंडन करने में अपना समय बिता रहे हैं। बिहार के राजनेताओं की बयानबाजी से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि महागठबंधन टूटने के कगार पर है। इसकी औपचारिक घोषणा ही बाकी है। बता दें कि पिछले दिनों बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने रामचरितमानस की कुछ चौपाई को कोट करते हुए बयान दिया था कि यह धार्मिक ग्रंथ नहीं समाज तोडने वाला है। इस धर्म ग्रंथ में उल्लेखित चौपाई दलित और पिछडी जाति के लोगों के लिए चिंता का विषय है। शिक्षा मंत्री के बयान के बाद जदयू के नेता और मंत्री अशोक चौधरी और जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने मौजूदा शिक्षा मंत्री के बयान पर जदयू को संज्ञान लेने के लिए कहा था। यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को स्पष्ट शब्दों में कहा था कि शिक्षा मंत्री को बयान वापस लेने को कहिए नहीं तो उनका विभाग बदलिए, लेकिन तेजस्वी यादव ने अब तक शिक्षा मंत्री पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की। इससे यह स्पष्ट पता चलता है कि तेजस्वी यादव ने अपनी पार्टी के नेताओं पर किसी तरह की कार्रवाई करने के बजाए, उनके संवैधानिक अधिकार का हवाला देकर अपने फर्ज से इतिश्री कर ली है। उसके बाद राष्ट्रीय जनता दल के सुरेंद्र यादव ने बयान देकर बिहार की राजनीति को और गरमा दिया है। सुरेंद्र यादव के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कभी भी किसी देश पर हमला करवा सकती है। उसके बाद जदयू ने राष्ट्रीय जनता दल नेता के बयान को गलत ठहराते हुए राजद नेतृत्व से कार्रवाई करने की मांग की है। हालांकि भाजपा में राजद नेता के उस बयान पर इतनी बेचैनी नहीं है जितनी कि जदयू के नेताओं में है।अब ताजा बयान बिहार के भूमि सुधार, राजस्व मंत्री आलोक मेहता का है जो राष्ट्रीय जनता दल कोटे से मंत्री है। उन्होंने एक सभा में कहा की 10 प्रतिशत आरक्षण लेने वाली उच्च जातियों का देश की आजादी में कोई योगदान नहीं है। वह 10 प्रतिशत जातियां अंग्रेजों की मुखबिर हुआ करती थीं जिन्होंने आजादी की लडाई तो नहीं लडी लेकिन अंग्रेजों से हजारों एकड जमीन पा गए। वही 10 प्रतिशत लोग सिर्फ मंदिरों में घंटा बजाते रहे जबकि दलित और पिछडे समुदाय के लोग मेहनत और मजदूरी करने के बावजूद भी दो जून की रोटी के लिए मशक्कत करते रहे। अब आलोक मेहता के इस बयान को क्या समझा जाए!

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तेजस्वी यादव और तेज प्रताप एक कार्यक्रम में

विवादित बयान देना उनके राजनीतिक एजेंडे में

राजनीतिक जानकारों की मानें तो राष्ट्रीय जनता दल नेताओं द्वारा बार-बार नए.नए विषयों पर विवादित बयान देना उनके राजनीतिक एजेंडे में है। जिनका रिमोट कंट्रोल लालू प्रसाद यादव के पास है। जानकारों का कहना है कि लालू प्रसाद यादव बिहार में भाजपा.जदयू की बढती नजदीकियों से बेहद चिंतित हैं। वह पिछले 18 सालों से सत्ता से वंचित है। उनकी पाटी्र बडी मुश्किल से नीतीश के साथ गठबंधन करके सत्ता में है लेकिन महज 5 महीनों में भाजपा और जदयू की नजदीकियां राष्ट्रीय जनतादल के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है। इसीलिए राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव चाहते हैं कि एक बार फिर बिहार में मंडल बनाम कमंडल की राजनीति शुरू हो और जातीय समीकरण की बदौलत वह लोकसभा चुनाव और आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव म भाजपा को शिकस्त दे सकें। उनके पुत्र तेजस्वी यादव बिहार की सत्ता पर आसीन हो जाएं। लेकिन दिनों दिन बदल रहे बिहार की राजनीतिक समीकरण से यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि जदयू और राजद के बीच खींचतान बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। तेजस्वी यादव भी अब अपने नेताओं पर अंकुश लगाने में नाकामयाब साबित हो रहे हैं।

उपेन्द्र कुशवाहा ने अपने पार्टी पर उठाए सवाल

पिछले कुछ दिनों से उपेन्द्र कुशवाह के भाजपा में जाने की खबर मीडिया चल रही थी। नवादा में समाधान यात्रा के दौरसान मीडिया  ने नीतीश कुमार से उपेन्द्र कुशवाहा के भाजपा में जाने के बारे में पूछा था। इस पर उन्हों ने कहा था कि उपेन्द्र कुशवाहा दिल्ली में इलाज करवा रहे हैं। वह पहले भी भाजपा के साथ रहे हैं अब वह  कहाँ जा रहे हैं, मुझे पता नहीं है। वह फैसला लेने के लिए आजाद हैं। वही ं उपेन्द्र कुशवाहा ने रविवार को मीडिया से बातचीत में अपने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर ही सवाल उठा दिया। उपेंद्र कुशवाहा ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब हम दिल्ली में इलाज करा रहे थे उसी समय पटना में मेरा  पोस्टमार्टम किया जा रहा था। हम तो सिर्फ पर्दे के बाहर हैं। भाजपा के साथ जाने के लिए जनता दल यूनाइटेड का नेतृत्व ही प्रयास कर रहा है। पार्टी कमजोर हो रही है ऐसे में क्या पार्टी की चिंता करना गलत है।

सारांश यह है कि महागठबंधन के बीच दरार पड़ चुकी है। राष्ट्रीय जनता दल को महसूस होने लगा है कि नितिश कुमार कभी भी पलटी मार सकते हैं। इसलिए राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने एक बार फिर कमंडल बनाम मंडल की राजनीति शुरू कर दी है। वह आगडा बनाम पिछड़ा की राजनीति की बदौलत ही 15 सालों तक बिहार में सत्तासीन रहे। उन्हें लगता है कि मंडल के जिन्न को जिंदा कर वह फिर से सत्ता में आ सकते हैं।

 

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